आज हम एक नई कहानी ईर्ष्या कभी न करे के बारे में पढ़ेंगे..
एक बार एक गांव में दो मुर्गों का आपस में झगड़ा शुरू हो गया. झगड़े का कारण बड़ा अजीब था. कारण यह था की एक मुर्गी के साथ दोनों में से शादी कौन करेगा?
दोनों में काफी अन बन हो गई जिसका मारपीट में रूपांतर हो गया. मारपीट करते समय दोनों एक दूसरे को बुरी तरह मार रहे थे. मारपीट में दोनों के शरीर से खून बह रहा था.
जिस मुर्गे का बुरी तरह से खून निकल रहा था, वह मुर्गा उस जगह से भाग खड़ा हुआ और मचान में जाकर अंदर से देख रहा था कि बाहर क्या चल रहा है. झगड़े में जो मुर्गा बाहर खड़ा था, उसे लगा कि वह जीत गया.
वह मुर्गा अपने घर के छत पर जाकर मुर्गी की और देखते हुए चिल्लाने लगा कि “मैं जीत गया, मैं जीत गया”. वह खुद अपनी जय जयकार करने लगा. उतने में एक बाज आया और उसने चिल्लाने वाले मुर्गे को अपने पैरों मैं दबोच कर उसका शिकार कर लिया.
यह देखने के बाद हारा हुआ मुर्गा मुर्गी के पास जाकर कहने लगा, ” मैं भी अगर उस मुर्गे कि तरह बाहर रहता तो मेरी हालत भी उसीकी कि तरह हो जाती. मैं मेरी जान को जैसे संभालता हूं वैसे ही तुम्हारी जान को भी संभाल लूंगा.
तात्पर्य:- जिसके सिर में सफलता की हवा भिन भिनाती है, उसी समय उसके हार की शुरुआत अपने आप हो जाती है. सफलता को पचाना आसान बात नहीं है.
? अनुवादक
योगेश बेलोकार
एस सॉफ्ट ग्रुप इंडिया