Table of Contents
प्राचीन सभ्यताओं में से कई लोगों ने ह्रदय को संवेदना, विचार और भावना का केंद्र माना है. और आज के विज्ञान, मनोविज्ञान और चिकित्सा ने हमें समझा दिया है कि यह मस्तिष्क ही है जो सभी विचारों, भावनाओं, प्रेम और वृत्ति का केंद्र है.
ह्रदय (दिल) और दिमाग कैसे काम करते है
अगर आप यह लेख पढ़ रहे हो तो यक़ीनन आपको ये जानने में दिलचप्सी होगी की आपका दिल सोच सकता है क्या? आप मुझसे पूछोगे तो में साफ़ शब्दों में बोलूंगा, “जी नहीं, 100% नहीं“. सबसे पहले, हम ये देखेंगे की “सोचना” क्या होता है, लेकिन इसके पहले, मुझे आपको ओर्गन्स और ओर्गान प्रणालियों के बारे में जानकारी देने में आनंद होगा. तो चलिए समझते है दिल और दिमाग से जुडी सारी बाते..
Science क्या कहता है?
हमारा मस्तिष्क NERVOUS प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह न्यूरॉन्स और ग्लायल सेल (कोशिकाओं) से बना है – न्यूरॉन्स जिन्हे हम “विशेष शक्तियां” ऐसा बोल सकते है, वो शरीर में एक दूसरे अन्य कोशिकाओं के साथ संवाद करने के लिए उपयुक्त होती हैं.
न्यूरॉन्स की गतिविधि हमारी सोच और बहुत अधिक व्यवहार के लिए जिम्मेदार होती है. मस्तिष्क शरीर के बाकी हिस्सों को नियंत्रित करता है, बाहरी दुनिया से शरीर के बाकी हिस्सों के लिए “जानकारी” भी दर्ज कराता है.
वही हमारा हृदय (दिल) CARDIOVASCULAR प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह (कार्डियक) मांसपेशी फाइबर कोशिकाओं से बना है. हृदय का उद्देश्य शरीर के बाकी हिस्सों में ट्यूबों (वाहिकाओं और धमनियों) के माध्यम से रक्त पंप करना होता है. ब्रेनस्टेम (दिमाग) के न्यूरॉन्स द्वारा हृदय को नियंत्रित किया जाता है.
हार्मोन या अन्य विभिन्न यौगिकों को रक्त प्रवाह जारी करके, मस्तिष्क ENDOCRINE सिस्टम की धीमी विधियों को देखके, हृदय अपनी गति को बढ़ाता या घटाता है. लेकिन मस्तिष्क को नियंत्रित करने के लिए हृदय के पास ऐसा कोई तंत्र नहीं हैं. हालांकि मस्तिष्क कार्यरत रखने के लिए हृदय भी भूमिका महत्वपूर्ण है.
जैसा की आपके पढ़ा, हृदय “सोचता नहीं है” – हम जब सोचते हैं तब हम दिमाग का उपयोग कर रहे होते है – न्यूरॉन्स की गतिविधि हमारे मानसिक अनुभव को जन्म देती है. हृदय रक्त प्रवाह प्रदान करके मस्तिष्क को क्रियाशील रखता है, लेकिन हृदय में “सोच” जैसा कुछ नहीं होता है.
तर्क और अनुभव क्या कहते है?
अबतक आपने विज्ञानं के तरीके से समझा है, अब में आपको तर्कशुद्ध बुद्धि से सोचकर समझाता हु. फर्ज कीजिये की आपको ब्रेन डेड घोषित कर दिया जाता है और मशीनों द्वारा जिंदा रखा जाता है (हृदय को पंप करते हुए) तो अगर दिलमे सोचने वाली प्रणाली है तब आपको सारी बाते याद रहनी चाहिए. हालांकि, यदि आपका दिल (हृदय) प्रत्यारोपण के लिए तैयार है, तो यह किसी अन्य व्यक्ति को देने के बाद भी, यदि आप सोच सकते हैं कि आपके मस्तिष्क से दिलका कनेक्शन डिस्कनेक्ट नहीं होगा तो यह आपका भ्रम है. आजतक विज्ञान इतिहास में यह दिखाने के लिए कोई डेटा नहीं है कि दुनिया भर में हर साल 5000 से अधिक हृदय प्रत्यारोपण होते हैं. लेकिन फिरभी जिसका ह्रदय किसीने लिया है देनेवाले की सोच लेनेवाले में नहीं पायी गयी. ऐसा कभी हुआ नहीं. तार्किक अर्थ में बोल सकते है की दिल सोचता नहीं.
ह्रदय से सोचना – एक बचपन से सुनाई गयी सोच
हम बचपन से मूवीज देखके या कुछ देखकर बोलने लगते है की, जैसे मेरा दिल ऐसा करने के लिए कह रहा है. आम दुनिया में, हम दिल को प्यार, भावनाओं आदि के साथ जोड़ते हैं. सोच केवल मस्तिष्क द्वारा की जाती है. लेकिन मस्तिष्क के पास विभिन्न प्रकार के कार्यों और सोच के लिए अलग-अलग भाग भी होते हैं.
हमारे मष्तिक का एक भाग जिसको हम प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स बोलते है वह सोच के लिए जिम्मेदार होता है. कई अन्य हिस्से भी सोचने के लिए कारन होते हैं लेकिन यह हिस्सा भावनात्मक और तार्किक दोनों तरह की सोच रखने में मदद करता है.
ह्रदय एक रक्त पंप है
जब भी कोई दुविधा होती है तो हम मस्तिष्क को तार्किक सोच के लिए और हृदय को भावनात्मक सोच के लिए जोड़ते हैं. हम दिल को एक भावनात्मक विचारक के रूप में जोड़ते हैं क्योंकि प्यार जैसी भावनाएं बाहरी कारणों पर निर्भर नहीं करती हैं. हृदय का कार्य किसी भी बाहरी कारणों को प्रभावित करने वाले रक्त को सिर्फ पंप करना है.
दिल एक रक्त पंप है, और कुछ नहीं. सभी सोच न्यूरॉन्स का उपयोग करके की जाती है. मस्तिष्क में 87 बिलियन न्यूरॉन होते हैं, हृदय के पास कोईभी न्यूरॉन्स नहीं होता है. अब आप ही बताओ…की क्या आपका ह्रदय सोच सकता है क्या?
अगर आप फिरभी दिलसे सोचने की बात मानते है तो कृपया इस लेख को अपने दिमाग पे मत लेना क्यों की दिल पे लेना ऐसा कुछ होता ही नहीं.
यह लेख अगर आपको अपने दोस्तों एवं परिजनों के साथ चर्चा करने में ठीक लगे तो कृपया उनके साथ जरूर शेयर करे. धन्यवाद् !
© सागर वझरकर
एस सॉफ्ट ग्रुप इंडिया