डॉक्टर बाबासाहब अम्बेडकर का नाम सिर्फ भारतवर्ष में ही नहीं अपितु पूरी दुनिया के प्रतिभाशाली विद्वानों में बड़े गर्व से लिया जाता है. डॉ. बी.आर. अम्बेडकर “बाबासाहब” वह क्रांति की ज्योत थे जिन्होंने भारत की अछूत मानी जाने वाली जनजाति के अधिकारों के लिए अपना जीवन न्यौछावर किया. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा गरीबों, अछूतों और महिलाओं के लिए लिखे अधिकारों को भारतीय संविधान में संघटित किया. स्वातंत्र्य, समता और बंधुता इन तीनों विचारों पर भारतीय समाज के पुनर्निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही.
अम्बेडकर भारत के गिनेचुने लोगों में से एक ऐसे विद्वान महापुरुष थे, जिन्होंने कानून, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में विशेषज्ञता हासिल कर भारत की उन्नति में अपना अमूल्य योगदान दिया. अपनी मृत्यु से लगभग दो महीने पहले ही 14 अक्टूबर 1956 में उन्होंने हिंदू धर्म से बौद्ध धर्म में अभ्यासपूर्ण तरीकेसे परिवर्तन कर लिया और अपने साथ कई लोगों को भी धर्मांतरण के लिए प्रोत्साहित किया.
प्रारंभिक जीवन
भीमराव अम्बेडकर का जन्म मध्य प्रदेश के महू में 14 अप्रैल 1891 को हुआ था. उनके पिता रामजी संकपाल ब्रिटिश भारतीय सेना में एक सूबेदार (अधिकारी) थे. उनके जन्म के समय एक विशिष्ट जाति में पैदा हुए लोग सीमित शिक्षा और रोजगार की संभावनाओं के साथ-साथ बहुत बड़े सामाजिक भेदभाव के भी शिकार थे. हालांकि, ब्रिटिश भारतीय सेना में एक अधिकारी होने के कारण उनके पिताे अपने बच्चों की स्कूल जाने की ख़्वाहिश पूरी कर सके. छोटे भीमराव स्कूल में बड़ेही होशियार और बुद्धिमान थे. वे स्कूल तो जा सकते थे, लेकिन ब्राह्मणों और अन्य उच्च वर्गों के महान विरोध के कारण, सामाजिक वर्ग को अलग कर दिया गया था और इसीलिए अक्सर उन्हें कक्षा में आकर बैठने की अनुमति नहीं दी जाती थी.
उनके परिवार को इस प्रकार जुल्म सहने पड़ते कि, उन्हें सार्वजनिक जगहों पर जलप्राशन करने की भी अनुमति नहीं थी और अक्सर रहने, स्वास्थ्य और खान-पान से जुड़ी कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता था, जो लोगों द्वारा उन्हें दी जाती थी. एक विशिष्ट जाति में पैदा होने के कारण लोगों के भेदभाव और अलगाव के दृष्टिकोण का अम्बेडकर के सामाजिक और राजनीतिक जीवन पर एक स्थायी प्रभाव पड़ा था. उनके पिता अपने बच्चों के लिए बहुत महत्वाकांक्षी थे और इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को अपनी शिक्षा में आगे बढ़ाने के लिए हिंदू क्लासिक्स और अन्य साहित्य दोनों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया.
शैक्षणिक जीवन
अंबेडकर ने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में डिग्री प्राप्त की. 1913 में, एक प्रतिभाशाली विद्वान के रूप में उन्होंने बड़ौदा राज्य के माध्यम से तीन साल के लिए सयाजीराव गायकवाड़ III (बड़ौदा के गायकवाड़) द्वारा स्थापित प्रति माह £11.50 (स्टर्लिंग) की कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क में अध्ययन करने के लिए स्नातकोत्तर छात्रवृत्ति प्राप्त की.
कोलंबिया में उन्होंने प्राचीन भारतीय वाणिज्य पर एक शोध प्रस्तुत करते हुए एम. ए. डिग्री प्राप्त की.अक्टूबर 1916 में, उन्होंने लंदन के ग्रे इन में बार कोर्स के लिए दाखिला लिया. उसी समय उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में दाखिला लिया जहां पर उन्होंने थीसिस पर डॉक्टरेट में काम किया. जून 1917 में, अपनी छात्रवृत्ति खत्म होने के कारण उनको भारत लौटना पड़ा.
लौटते समय, उनका पुस्तक संग्रह एक अलग जहाज पर पहले ही भेजा गया था. लेकिन टॉरपीडो के कारण वह जहाज डुब गया था. भारत आकर उन्हें बड़ौदा राज्य की सेना में सेवा करने के लिए कहा गया. हालाँकि, उनका सैन्य करियर बहुत लंबा नहीं चल सका. उन्होंने एक इन्वेस्टमेंट कौन्सिलर व्यवसाय स्थापित करने का भी प्रयास किया, लेकिन जल्द ही ग्राहकों को उनकी ‘एक विशिष्ट जाती’ के बारे में पता चला और उन्हें अपने बने-बनाएं ग्राहकों को खोना पड़ा. 1918 में, वे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के तौर पर बॉम्बेे सिडेनहम कॉलेज से जुड़े. कुछ समय के लिए उन्होंने वकील के रूप में भी काम किया. उसके बाद उन्हें चार साल के भीतर अपनी थीसिस जमा करने के लिए वापस लंदन लौटने की अनुमति मिल गई. उन्होंने उस अवसर पर फिरसे वापसी की, और उन्हें ग्रे इन में बुलाया गया और वहाँ उन्होंने अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री (1921) और अर्थशास्त्र में (1923) D.Sc. डिग्री पूरी की. उन्होंने यह थीसिस “रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और इसके समाधान” इस विषय पर लिखी थी. इसकी खास बात यह है कि आगे चलकर इसी थीसिस के आधारपर , 1935 में ‘रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया’ की नींव रखी गई थी जो आज पूरे देश के बैंकों की बैंक है. इस बात से बाबासाहब के थीसिस की ताकद का पता लगाया जा सकता है.
बाबासाहेब अम्बेडकर का राजनीतिक जीवन
1920 के दशक में, अंबेडकर अपने साथी लोंगो की दुर्दशा को लेकर चिंतित और सक्रिय हो गए. वे भारतीय राजनीति के एक उच्च व्यक्तित्व वाले व्यक्ति बन गए थे. उन्होंने ‘आउटकास्ट’ के लिए शिक्षा में सुधार करने की मांग की. वर्ष 1924 में, उन्होंने बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की – जो संगठन के कल्याण में सुधार करने के लिए समर्पित थी. उन्होंने “मूकनायक” नामक एक समाचार पत्र की स्थापना की और उसकी मदद से अस्पृश्यता के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किये. उन्होंने मनुस्मृति (मनु के कानून) को जातिगत भेदभाव का कारण बताया और 25 दिसंबर 1927 को उस किताब की प्रतियां जलाकर हिंदू धर्म के रूढ़िवादी तत्वों पर हमला किया. उन्होंने संसद में स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में प्रस्तुत किए ‘हिंदू कोड बिल’ ठप होने के बाद मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया, लेकिन बाद में उन्हें राज्यसभा के लिए नियुक्त किया गया था. 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर के दीक्षाभूमि पर अपने लाखों दलित साथियों के साथ उन्होंने बौद्ध धम्म को अपनाया. उसके बाद लगभग दो महीनों के भीतर ही, 6 दिसंबर 1956 को उनका निधन हो गया. हर साल 6 दिसंबर को चैत्यभूमि पर लाखों अनुयायी उनकी वंदना करने आते हैं. 1950 के दशक में, बौद्ध भिक्षुओं ने उन्हें बौद्ध धर्म के उच्चतम उपाधि ‘बोधिसत्व’ रूप से सम्मानित किया. 1990 में, मरणोपरांत, भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से उन्हें सम्मानित किया गया. डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर भारत सहित दुनिया भर में लाखों शोषित, उत्पीड़ित, क्रांतिकारी और मानवतावादी लोगों की प्रेरणा बन चुके हैं. उनका जन्मदिन भारत के साथ दुनिया भर में भी बड़ी खुशी से हर साल मनाया जाता है.
वर्ष 2012 में हुए सबसे महान भारतीय (द ग्रेटेस्ट इंडियन) नामक सर्वेक्षण में डॉ. अम्बेडकर को प्रथम स्थान मिला है. साथ ही कोलम्बिया विश्वविद्यालय की तरफ से जारी किये गए वर्ष 2014 की अबतक के पढ़े हुए छात्र सूची में पहले 100 छात्रों में डॉ. अम्बेडकर को ‘सबसे बुद्धिमान छात्र’ (फर्स्ट कोलंबियन अहेड ऑफ देअर टाइम) के रूप में सबसे प्रथम स्थान देकर सम्मानित किया गया है.
जिस प्रकार उन्होंने एक गरीब परिवार से होते हुए भी अपनी मेहनत से सभी तरह के अन्याय, मुसीबतों को झेलकर भी अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी और कोलंबिया विश्वविद्यालय, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स जैसे बड़े विश्वविद्यालयों से दो-दो डॉक्टरेट डिग्रियां एक साथ हासिल की, यह बात उस समय ही नहीं, बल्कि आज भी किसी कठिन तपस्या से कम नहीं है.
हममें से बहुत कम ही ऐसे लोग होंगे जिनको बाबासाहब के बारे में यह जानकारी भी होगी कि उन्होंने सिर्फ दलितों या अछूतों तक ही अपने कार्य को सीमित नहीं रखा अपितु गरीब लोग, मजदूर, किसान, महिलाएं और हर उस वर्ग के लिए कार्य किया जो बाकी वर्गों के दबाव में पिछड़कर अन्याय झेल रहे थे. आप सभी को उनके इन्ही कार्यों से अवगत कराना ही इस लेख की जिम्मेदारी है.
विदेशों में बाबसाहब के कार्यों का गौरव
हालांकि, इस समय पूरी दुनिया कोविड-19 की महामारी से पीड़ित है और इसका प्रभाव डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर की जयंती भी है. इसलिए, सभी क्षेत्रों के लोग सभी को घर पर ही भीमजयंती मनाने की अपील कर रहे हैं.
बाबासाहब की जयंती जिस प्रकार भारत में मनाई जाती है, ठीक वैसे ही कई अन्य देशों में भी मनाई जाती है. इन देशों में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, इंग्लैंड, दुबई, मलेशिया, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, वेस्ट इंडीज और कनाडा भी शामिल हैं. इस बार कनाडा की बर्नबी (Burnaby) महानगर पालिका ने डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर जयंती दिवस को ‘समता दिवस’ के रूप में मनाने का सराहनीय निर्णय लिया गया है और इसके प्रोक्लेम (Proclaim) पर नगर निगम प्रशासन के मेयर माइक हर्ले द्वारा हस्ताक्षर भी किए गए हैं.

इस प्रोक्लेम में, महानगरपालिका कहती है कि कनाडा सांस्कृतिक विविधता का शहर है. हम दुनिया की विषमता के बारे में चिंतित हैं. आज भी, दुनिया में कई जगहों पर, असमानता का अनुभव किया जाता है, जहाँ भी इस विषमता को नष्ट करने के प्रयास किए जा रहे हैं, उन्हें समर्थन देने की आवश्यकता है.
भारत का संविधान समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के मूल्यों पर आधारित है, जिसे 26 जनवरी, 1950 को अपनाया गया था. बाबासाहब अम्बेडकर के अथक परिश्रम और भविष्य की दृष्टि का गौरव और सम्मान केवल भारत में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी किया गया है. इसलिए, बर्नबी के मेयर माइक हर्ले ने अपने बयान में कहा है कि उन्होंने बाबासाहब के जन्मदिन को समता दिन के रूप में मनाने का फैसला किया. विदेशों में हो रहा बाबासाहब का गौरव हर भारतीय के सीने को गर्व से भर रहा है.
डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर ने भारतीय संविधान में सभी बुनियादी कानूनों को अभ्यासपूर्ण तरीकेसे समाविष्ट किया. जैसे कि-
- रोजगार विनिमय – Employment Exchange
- नियोक्ता राज्य बीमा – कर्मचारी राज्य बीमा- Employees State Insurance-ESI
- 12 घंटे से घटाकर 8 घंटे तक काम – Working Hours 12 Hrs to 8 Hrs
- श्रमिक संघ की स्वीकृति – संघ के व्यापार के लिए अनिवार्य मान्यता- Compulsory Recognition for Trade of Union
- महंगाई भत्ता- Dearness Allowance
- छुट्टियों का भुगतान – Paid Holidays
- स्वास्थ्य बीमा – Health Insurance
- कानूनी हड़ताल अधिनियम – Legal Strike Act
- भविष्य निधि- Provident Fund (PF)
- श्रम कल्याण कोष – Labour Welfare Fund
- तकनीकी प्रशिक्षण योजना – Technical Training Scheme
- मध्यवर्ती सिंचाई आयोग – Central Irrigation Commission
- अर्थव्यवस्था का प्रावधान – Provision of Finance Commission
- वोटिंग अधिकार – Right to Vote
- भारतीय सांख्यिकीय कानून – Indian Statistical Law
- केंद्रीय तकनीकी विद्युत बोर्ड – Central Technical Power Board
- हीराकुड बांध – Hirakud Dam
- दामोदर घाटी परियोजना – Damodar Valley Project
- ओड़िसा नदी – Orissa River
- भाखड़ा-नांगल बांध – Bhakra-Nangal Dam
- सोन नदी परियोजना – Son River Valley project
- भारतीय रिजर्व बैंक – Reserve Bank of India (RBI)
- राज्य प्रभाग आयोग – State division Commission
- बिजली ग्रिड परियोजना – Power Grid system
- नदी ग्रिड परियोजना – River Grid system
महिलाओं के प्रोत्साहन के लिए किये गए विशेष कार्य जिस वजह से वे स्वाभिमान का जीवन जी रही हैं.
- संरक्षकता का अधिकार – Right To Guardianship
- संपत्ति का अधिकार – Right To Property
- तलाक का अधिकार – Right To Divorce
- मातृत्व अवकाश / मातृत्व लाभ अधिनियम – Pregnancy Leave/ Maternity Benefit Act
- काम में कोई महिला पुरुषों से अलग नहीं (समान कार्य के लिए समान वेतन) – Equal Pay for Equal Work
- महिला श्रम सुरक्षा अधिनियम – Women Labour Protection Act
हमारी यही गलती है कि बाबासाहब ने किए इन सारे कामों को पूरी तरह ना समझते हुए उनको सिर्फ दलितों का नेता बताकर हमने खुद उनके काम के दायरे को और उनके प्रति हमारी समझ को संकुचित कर रखा है. अतः हमारा यही कर्तव्य बनता है कि हमारे देश के संविधान को पूरी तरह से समझकर उसका दिलोदिमाग से पालन करें, हमारी ओर से यही डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर को सच्ची अभिवादन होगी.
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© संतोष साळवे
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