By Malvika Kashyap
March 30, 2022
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जालियांवाला बाग ह-त्याकांड को इतिहास का सबसे काला दिन माना जाता है. 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन यहां पर 1000 से भी ज्यादा लोगों को गोलियों से भून दिया गया था.
अंग्रेजी अफसर जनरल डायर के कहने पर उसके सैनिकों ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में बैसाखी के लिए जमे हुए निहत्थे लोगों को मौ त के घाट उतार दिया गया था.
लेकिन इसी दिन के बाद से भारतीयों के सीने में आजादी का तूफान और तेज हो गया था. इसके बाद अंग्रेजों के शासन के अंत होने की शुरुआत हो गई थी.
दरअसल अमृतसर के जलियांवाला बाग में रौलेट एक्ट के खिलाफ बड़ी सभा का आयोजन किया गया था. साथ ही यह बैसाखी का दिन भी था. इसलिए यहां पर कई सारे लोग इकट्ठा हुए थे.
लेकिन तभी ब्रिटिश ऑफिसर जनरल डायर अपनी फौज को लेकर वहां पहुंचा और उसने बिना किसी सूचना के अचानक से और लगातार 10 से 15 मिनट के लिए गोलियां बरसानी शुरू कर दी थी.
कई सारे लोग अपनी जान बचाने के लिए यहां वहां भागते रहे. चारों ओर से ऊंची दीवारों से घिरी हुई इस बाग में जाने के लिए एक छोटी सी गली का रास्ता ही था.
बाग में मौजूद पानी के कुए में भी कई सारे लोगों ने जान बचाने की आशा से छलांग लगा दी; मगर कूदे हुए लोगों में से भी कोई ना बच सका. आज इसे शहीद हुआ कहा जाता है.
इस हत्याकांड की भारत समेत समूची दुनिया में कड़ी निन्दा एवं आलोचना हुई. इसके बाद जनरल डायर को अपने पद से इस्तीफा भी देना पड़ा था.
हालांकि इस भयानक नर सं-हार के चलते कई अंग्रेजों द्वारा जनरल डायर की प्रशंसा भी हुई एवं कईयों के द्वारा उसे हजारों पाउंड के पुरस्कार भी दिए गए.
इसके बाद 23 जुलाई 1927 के दिन बीमारी के कारण जनरल डायर की मृत्यु हो गई. लेकिन यह हत्या कांड करने के लिए आदेश देने वाला माइकल ओ'ड्वायर अभी भी जिंदा था.
इस घटना का बदला लेने के लिए ऊधम सिंह नामक वीर क्रांतिकारी लंदन गए थे. वहां उन्होंने कॉक्सटन हॉल में मौजूद माइकल ओ'ड्वायर की 13 मार्च 1940 को गोली मारकर ह त्या कर दी थी.
ऊधम सिंह जी ने तत्कालीन पंजाब गवर्नर माइकल ओ'ड्वायर को मारने की खाई हुई कसम पूरी कर दी थी. इस घटना के बाद 31 जुलाई 1940 के दिन ऊधम सिंह जी को फां सी की सजा दी गई थी.
पंजाब की इस जालियांवाला बाग को देखने के लिए आज भी बड़ी संख्या में पर्यटक जाते हैं और इतिहास के उस क्रूर दिवस की यादों को ताजा करने का प्रयास करते हैं.
आज भी जालियांवाला बाग की दीवारों पर लगे गोलियों के निशान भारत के इतिहास में घटी हुई इस क्रूर घटना की याद दिलाते हैं. इस दिवस के उपलक्ष पर हमें सभी शहीद क्रांतिवीरों को याद करना चाहिए!
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