By Ashish Kale
April 13, 2022
Note Tap the screen for the next slide Or to skip the advertisement
ब्रम्हचर्य का पहला अर्थ शुद्धात्मा में रहना और दूसरा अर्थ खुद को अपने मन, काया, वचन आदि विकारों से एकाकार ना होने देना होता है. वीर्य बचाने को भी ब्रम्हचर्य पालन कहते हैं.
ब्रम्हचर्य में किसी भी उत्तेजक पदार्थ को ना खाना, गलत व्यक्तियों का साथ त्यागना, हमेशा अच्छी पुस्तकें पढ़ना, जल्दी सोना एवं उठना जैसे कई नियम होते हैं.
हमेशा ठंडे जल से स्नान, नियमित रूप से व्यायाम, संसार की तरफ आकर्षित ना होना, महीने में कम से कम 1 उपवास करना, कच्ची सब्जियां एवं फल खाना जैसे नियम भी होते हैं.
ब्रम्हचर्य अर्थात वीर्य में बहुत शक्ति होती है. इससे इंसान में आत्मविश्वास एवं शक्ति का संचरण होता है और ऐसा मनुष्य हर जगह विजय पाता है.
देखा जाए तो ब्रह्मचर्य के दो प्रकार होते हैं. पहले प्रकार को अंतरंग ब्रम्हचर्य कहते हैं. एवं दूसरे प्रकार को बाह्य ब्रम्हचर्य कहां जाता है.
पहले अर्थ में सं भोग की शक्ति संचित करना होता है. दूसरे अर्थ में अपनी शिक्षा एवं भक्ति का पूरी तरह से संचय होता है. तीसरे अर्थ में ब्रह्म की राह पर चलना शामिल होता है.
अपने वीर्य की पूरी तरह से रक्षा करते हुए ब्रम्हचर्य व्रत का पालन कर सकते हैं. इसलिए किसी भी तरह की उत्तेजित क्रिया, असंग या उत्तेजित पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए.
ब्रह्मचारी मनुष्य अपने किसी भी कार्य को आसानी से पूरा कर सकता है. किसी भी परिस्थिति का डटकर सामना कर सकता है. उसकी मानसिक, शारीरिक क्षमता बढ़ती है.
ब्रह्मचर्य के पालन से व्यक्ति का शारीरिक एवं बौद्धिक बल बढ़ते हुए सौंदर्य में वृद्धि हो सकती है. साथ ही हमें बीमारियों से दूर रख सकता है. इससे आयु भी लंबी हो सकती है.
ब्रह्मचर्य पालन से मनुष्य शारीरिक एवं मानसिक तौर पर बलवान बन सकता है. साथ ही उसका सामाजिक जीवन भी प्रभावी हो सकता है. वह षडविकारों से भी दूर रह सकता है.
ब्रह्मचारी रहने के बताए गए सभी फायदे केवल जानकारी के तौर पर बताए गए हैं. इनकी पुष्टि एवं इस बारे में अधिक जानकारी के लिए किसी विशेषज्ञ की मदद जरूर ले.
Next Web Story
To visit next Web Story, Swipe Up the following button or Click on it 🙏 Thank You!