अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस- कल, आज और कल

8 मार्च, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक ऐसा दिन है जो महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक उपलब्धियाँ प्रदान करने के लिए समर्पित है.

शुरुवात में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस फरवरी में मनाया जाता था, लेकिन अब यह 8 मार्च को क्यों आयोजित किया गया है?

आइये इसका जवाब ढूंढे :
28 फरवरी, 1908 को लगभग 15,000 महिलाएँ न्यूयॉर्क शहर की सड़कों पर अपने खोये हुए अधिकारों और सम्मान की मांग करने के लिए उतर आई थी. उनमे काम के घंटे कम करना, भुगतान इक्विटी और मताधिकार जैसी चीजें शामिल थी. महिलाओं का कर्तव्य सिर्फ उसके घर और मातृत्व तक ही केंद्रित और सिमित नहीं है अपितु घर का मतलब पूरे देश से होना चाहिए, इस तरह से सभी महिलाएँ अपने अधिकारोंको प्राप्त करनेके लिये एकजुट हो गयी.

उसी प्रकार 1911 में, यूरोप में 1 मिलियन से अधिक महिलाओं और पुरुषों ने मार्च किया और एक अविश्वसनीय प्रदर्शन में 17 देशों की 100 से अधिक महिलाओं ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस शुरू करने के लिए सर्वसम्मति दर्शायी. 1975 में संयुक्त राष्ट्र ने 8 मार्च को महिलाओं के सम्मान में आधिकारिक अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को छुट्टी के रूप में चुना. आज पूरे विश्व में 100 से अधिक देशों में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मान्यता प्राप्त है. हालाँकि यह दिवस शुरू होने के बाद से महिलाओं के अस्तित्व मानने वालोमे में बेशक वृद्धि हुई है, लेकिन अब भी बहुत काम करना बाकी है.

इस दिन उन आवाजों का सम्मान होना जरूरी हैं जो अनसुने रह जाते हैं, उन अधिकार की बात होनी चाहिये जो उन्हें माँगनेपर भी नहीं दिए जाते और उन आँसुओ को पोछने की कोशिश होनी चाहिए जिन आँसूओंके पीछे हजारो सपने सँजोए जाते हैं. विकासशील और पिछड़े देशों में आज भी महिलाओंके सम्मान के साथ भेदभाव और असमानता एक प्रमुख सवाल है.

“I measure the progress of a community by the degree of progress which women have achieved.”

– Dr. B. R. Ambedkar

भारत में भी महिला दिन बहुत सम्मान के साथ मनाया जाता हैं. उस दिन के दौरान कई समारोह उनको समर्पित किए जाते हैं. आधुनिक युग में भी यह दिन महिलाओं की सामाजिक भूमिका और उनकी शक्ति को दर्शाता हैं.
ऐसी धैर्यशील, करुणामयी, वीरांगना, सुपुत्रियोंके लिये ही महाराष्ट्र की माता सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले ने लोगोंके फेंके हुए गोबर और पत्थरोंका निडरता और साहस्य से सामना करके 1848 में पुणे में पहली कन्या प्रशाला निकालकर उन्हें अपने क़दमोंपर गर्व और सम्मानपूर्वक खड़ा होने का सुवर्ण अवसर दिया है, जिसे हर नारी ने ध्यान में रखकर ही अपने सुपथ पर मार्गक्रमण करना चाहिए, तभी उज्ज्वल भारत के भविष्य की नींव रखी जा सकती हैं.

– संतोष साळवे
एस सॉफ्ट ग्रुप इंडिया