दोस्तों, शीर्षक पढ़कर आपके मन में यह सवाल आया होगा कि क्या सच में कोई चीज बिना दिमाग के करना संभव है? आइए इसी बारे में हम आज बात करेंगे.
कल्पना कीजिए, आप अपने दोस्त को कोई गणित समझा रहे हैं, लेकिन तीन-चार बार एक ही बात कहने पर भी उसके ध्यान में नहीं आ रही हो, तो आप उससे यही कहोगे कि, ‘अरे भाई अपने दिमाग पर थोड़ा सा जोर दो.’ हम यह बात अक्सर गुस्से में या मजाक में कह भी जाते हैं. हमारा दिमाग रोजमर्रा के सभी कार्यों को करने के उपयोग में आता है. लेकिन सोचिए क्या ऐसा कोई कार्य है, जो बिना दिमाग के किया जा सकता है.
दिमाग के गैरमौजूदगी के उदाहरण
1945 में एक अमेरिकन किसान ने रात के खाने में मुर्गा काटा था, लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि वह मुर्गा बिना सर के 18 महीने तक जिंदा रहा और वह किसान उस मुर्गे को कटी हुई गर्दन से ही दाना और पानी देता था. वैज्ञानिकों ने इसकी वजह बताई थी की मुर्गे के कटे कटे हुए सिर में भी ब्रेन स्टेम और सेरेब्रम के कुछ हिस्से बचे हुए थे, जो उसे मरने नहीं दे रहे थे.
इंसानों में भी ऐसा ही एक उदाहरण पाया गया है. कलाई श्या बैरेट नामक 6 साल की लड़की के सिर्फ ब्रेन स्टेम का ही विकास हो पाया था. बाकी संपूर्ण भाग द्रव से भरा रह गया. आज भी इस लड़की को डॉक्टरों की देखरेख में रखा गया है. कुछ कीड़े-मकोड़ों को तो दिमाग की जरूरत ही नहीं रहती. अगर उनका सर भी कट जाए तो भी वे जिंदा रह सकते है.
कॉक्रोच इसका उत्तम उदाहरण है.लेकिन इंसान के साथ ऐसी बात संभव नहीं है. फिर भी कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिनमें इंसान को अपना दिमाग लगाने की जरूरत नहीं पड़ती.
सजगता शरीर को, Brain के बिना भी आसानीसे संभाल लेती है
क्या आपने कभी सजगताओं अर्थात रिफ्लेक्सेस के बारे में सुना है? जब भी आप गलती से किसी गर्म चीज को छू लें, तो आपका हाथ तुरंत पीछे आ जाता है. यह करने के लिए आपको दिमाग से सोचने की भी जरूरत नहीं पड़ती.
ऐसे समय किसी गर्म चीज से आप टकरा गए हैं यह बात दिमाग की तरफ जाने की बजाय आपके रीड की हड्डी अर्थात स्पाइनल कॉर्ड में ही तुरंत पहुंचकर उस पर विशिष्ट मोटर न्यूरॉन्स के द्वारा के प्रक्रिया की जाती है.
ठीक इसी प्रकार जब खाना खाते वक्त आपके गले में अटक जाता है या फिर नाक में धूल चली जाए तो आप खाँसने और छींकने लगते हैं. यह भी ऐसी ही सजगता में होने वाली प्रक्रियाएं हैं.
इसके लिए आपको दिमाग की जरूरत नहीं पड़ती. इसी तरह कुछ प्रक्रियाएं अनैच्छिक होती है और हमारा ध्यान उधर हो ना हो यह अपने आप होती रहती है. जैसे हमारे दिल का धड़कना किसी भी प्रकार दिमाग पर निर्भर नहीं करता. हमारा दिल खुद ही स्नायु की बनी हुई एक मांसपेशी होती है, जो अपने अंदर की विद्युत गतिविधियों पर ही काम करता है. लेकिन इसके उल्टा किसी दूसरी मांसपेशियों का उपयोग करने के लिए हमें अपने दिमाग की जरूरत पड़ती है.
इस अनैच्छिक क्रिया का एक और उदाहरण हमारी स्किन यानी चमड़ी है. हमारी चमड़ी में मौजूद कोशिकाएं अर्थात स्किनसेल्स जिंदा रहने के लिए ‘ऑस्मोसिस’ नाम की प्रक्रिया पर निर्भर रहती है. इस प्रक्रिया में कोशिकाओं को रासायनिक प्रक्रिया के द्वारा पोषण मिल जाता है.
इस प्रकार इन कोशिकाओं को दिमाग के होनेेे या ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है. ऐसे कुछ मर्यादित ही काम होते हैं, जिनमें हमारे दिमाग की भूमिका नहीं होती, लेकिन फिर भी वे इतने महत्वपूर्ण होते हैं कि दिमाग के सोचे बिना ही ये कार्य पूर्ण हो सकते हैं.
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© संतोष साळवे
एस सॉफ्ट ग्रुप इंडिया