हमारी धरती अर्थात पृथ्वी पर हम अपने रोजमर्रा के प्रत्येक काम के लिए इसके ध्रुव पर निर्भर रहते हैं. लेकिन सोचिए क्या होगा जब पृथ्वी का उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पलट जाएगा…?
कल्पना कीजिए कि आप अभी अपने बिस्तर से उठे हैं और आपको पता लगे कि पूरी पृथ्वी पलट गई है! अर्थात ग्रीनलैंड और दक्षिणी गोलार्ध में है और अंटार्कटिका उत्तरी गोलार्ध में है. तब आपको पृथ्वी से क्या उम्मीद होगी, जब आपकी कंपास ही गलत दिशा में पॉइंट करेगी, जो दिशा ही पूरी तरह से गलत होगी.
पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र अर्थात मैग्नेटिक फील्ड कंपास को दिशा बताने के अलावा भी बहुत कुछ करता है. यह हमें सौर घटनाओं के प्रभाव से बचाता है, जो सूरज की तेज धूप और गर्मी के कारण निकलती है. साथ ही यह हमें सूरज के प्रभारीत कणों से भी बचाता है, जो शायद यूवी रेडिएशन के चलते पूरी पृथ्वी को नष्ट कर देते. यह प्रभारित कण अर्थात पार्टिकल्स हमारे सूर्य द्वारा छोड़े जाते हैं, लेकिन मैग्नेटिक फील्ड के कारण हम उनसे सुरक्षित रह पाते हैं.अब आप यह सोच रहे होंगे कि, हमारी पृथ्वी का मैग्नेटिक फील्ड कैसे बनता है. तो चलिए पहले उसी के बारे में जान लेते हैं.
पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic field of Earth)
हमारी पृथ्वी की चुंबकीय क्षेत्र का उद्गम पृथ्वी की सतह की हजारो माइल्स नीचे होता है, जहां पृथ्वी की बाहरी परत (outer core) खुद ही संवहन प्रक्रिया (Convection) द्वारा विद्युत धारा (electrical current) उत्पन्न करती है, जो हमारी पृथ्वी के परिवलन के साथ होकर एक चुंबकीय क्षेत्र को तैयार करता है.
वह पृथ्वी के इर्द-गिर्द एक बार मैग्नेट की तरह दो अलग-अलग छोर पर होते हैं. बार मैग्नेट की तरह ही पृथ्वी के दो ध्रुव है जिन्हे हम उत्तर ध्रुव और दूसरा दक्षिण ध्रुव के नाम से जानते हैं.अब हम अपने मूल प्रश्न पर आते हैं कि, क्या होगा अगर ये दोनों ध्रुव पलट जाएंगे?पृथ्वी पर कई सालों पहले बने लावा रस के पत्थरों से हमें यह ज्ञात हुआ है कि ऐसी ही कुछ घटनाएं पहले भी हो चुकी है.
पिछले 100 मिलियन सालों में ऐसा लगभग 170 बार हो चुका हैं. हमें उन सब के सटीक अवधि के बारे में तो अभी पता नहीं है; लेकिन वैज्ञानिक यह पता लगा चुके है कि, पिछली बार लगभग 7 लाख 80 हजार साल पहले पृथ्वी के ध्रुव ने अपनी जगह बदल ली थी, जिसमें 41 हजार साल पहले दोनों ध्रुवों में अल्पकालिक बदलाव भी हुआ था. यह लगभग 1000 साल तक रहा. इन बदलावों का कारण हमारे लिए अभी तक एक पहेली है. अब तक की जानकारी से हम यह भी पता नहीं लगा सकते कि भविष्य में ऐसा बदलाव कब होगा.
इस तरह ध्रुव का अपनी जगह बदलना आम बात नहीं है, लेकिन इतना अंदाज़ा तो हम जरूर लगा सकते हैं की यह कुछ रातों में तो नहींं हो सकता. इसे कम से कम 100 सालों से लेकर 20 हजार सालों तक का समय लग सकता है.
Earth के ध्रुवों के बदलाव के कारण और परिणाम
यूरोपियन स्पेस एजेंसी के एक सेटेलाइट ने यह पाया है की हमारे पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड की ताकत हर गुजरते दशक के साथ 5 फ़ीसदी कमजोर होती जा रही है. कुछ लोगों का कहना हैै कि इस मैग्नेटिक फील्ड की ताकत का गिराव कभी भी रुक सकता है. क्योंकि पिछले 50 हजार सालों में हमारे पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड की ताकत अभी सबसे ज्यादा है.
तो इसके उल्टा, कुछ लोगों का यह कहना है कि पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड अगले 1500 सालों में उल्टी हो जाएगी. लेकिन अभी हमारे पास ऐसा कुछ होने के सबूत नहीं है.अगर हमारी पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड बदल भी जाए, तो भी हमारा वातावरण ऐसेे ही पृथ्वी को सूर्य की अतिनील किरणोंं से बचाता रहेगा; लेकिन कमजोर मैग्नेटिक फील्ड के कारण हमें यह हानिकारक कणों एवं को कॉस्मिक किरणों के चपेट में ले ही लेेगा, जिसस शायद पृथ्वी पर कैंसर जैसी महामारी फैल सकती है.
इसके अलावा मैग्नेटिक फील्ड उल्टी होने के कारण हमारी दूरसंचार एवं विद्युत प्रणाली पूरी तरह से बंद हो सकती हैं. इसके अलावा यह भी हो सकता है कि एक से ज्यादा उत्तर एवं दक्षिण ध्रुव बन जाएं. इसकी वजह से बहुत से जानवर जैसे कि पशु, पक्षी, व्हेल मछली इनको बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है, जो इस मैग्नेटिक फील्ड की मदद से ही दिशा को जान सकते हैं.
इस बात से पुष्टि नहीं हो सकती की मैग्नेटिक फील्ड के बदलाव केेे कारण मनुष्य का अंत हो जाएगा, क्योंकि भूतकाल में हुए बदलाव के कारण कोई बड़ी भयंकर दुर्घटनाएं सामने नहीं आई है. लेकिन हां, आपकी पुरानी कंपास काम नहीं करेगी; इसलिए आपको नई कंपास लेनी पड़ सकती है.
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© संतोष साळवे
एस सॉफ्ट ग्रुप इंडिया