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कहाणी माँसाहेब जिजाऊ के जन्मस्थान की..

महाराष्ट्र, बुलडाणा शहर से लगभग ९६ किमी के दुरी पर मराठवाडा प्रांत के सरहद्द पर स्थित है सिंदखेडराजा शहर. निकटतम रेल मार्ग वाले जालना शहर से ३० किमी तथा विमानतल वाले शहर औरंगाबाद से १०० किमी के दुरी पर सिंदखेडराजा शहर है. तहसील कार्यालय, तालुका एवं मातृतीर्थ के नाम से यह पहचाना जाता है. छत्रपती शिवाजी महाराज की आऊसाहेब, जिन्हें हम मुलतः माँसाहेब कहते है. माँसाहेब का जन्म यहीं सिंदखेडराजा में हुआ था.

स्वराज निर्माण की प्रेरणा इसी मिट्टी से शिवाजी महाराज को मिली. १५ वें शतक के सन् १५७६ में राजे लखुजीराव जाधव यहांपर स्थित यमुनाबाई मुळे इन पर होनेवाले अत्याचार पर आवाज उठाने के लिए यहाँपर स्वारी करके आए. उसी दौरान से यहाँपर स्थित ६ से ८ गांव की वतनदारी उनको मिली. १२ जनवरी १५९८ को जन्म लेनेे वाली माँसाहेब महाराष्ट्र के कुलदैवत के रुप में छत्रपती शिवाजी महाराज की माता जिन्हें हम राष्ट्रमाता भी कहते है, उनका जन्म इसी सिंदखेडराजा नगरी में हुआ.

सिंदखेडराजा नगरी में माँसाहेब का बचपन बीत गया था, इतिहास इस सुवर्ण अवसर का साक्षी है. वह इतिहास राजमहल के रुप में अपनी गवाही बयाँ करता है. साथ ही साथ रंगमहाल, कालाकोट, राजदरबार, माँसाहेब के पिताह लखुजी राजे जाधव इनकी समाधी, इसके अलावा बहोत सारी ऐतिहासिक वास्तु आजभी इतिहास के सुवर्ण क्षणों के पन्नों को दोहराती है.

रंगो को चारों ओर बिखेरने के लिए रंगमहाल में एक शानदार वास्तु की निर्मीती माँसाहेब जिजाऊ के उम्र के ६ साल में लिए उनके पिता लखुजी राजे जाधव इन्होंने की थी. इसी रंगमहाल में माँसाहेब जिजाऊ एवं राजे शहाजी भोसले इनका विवाह सुनिश्चित किया गया. इतिहास इस महत्वपुर्ण घड़ी का गवाही देता है. जाधव ओर भोसले यह दो राजवंश इसी पवित्र भूमी में एक हो गए. आगे चलकर माँसाहेब का विवाह शहाजी राजे के साथ होकर वह उनके साथ अलग-अलग प्रांत में उनके साथ गए. लेकिन सन १६२९ के दरम्यान अदिलशाही ओर निजामशाही में प्रचंड रुप में तणाव निर्माण हुआ.

शहाजी राजे अदिलशाही में सरदार थे और लखुजी राजे निजामशाही में सरदार थे. ऐसा होने की वजह से दो मराठा सरदारों को आमने-सामने युध्द के लिए आना ही पद सकता था लेकिन दोनों सरदारोंने युध्द में न आते हुए आदिलशाह एवं निजाम इनके साथ दोनों ने तह किया. इस प्रकारसे मराठों की ताकद एक होने से बोखलाए हुए निजाम ने लखुजी राजे जाधव इनका उनके ३ पुत्रों के साथ, दौलताबाद में २५ जुलाई १६२९ को खून किया गया.

इसी दौरान शिवबा अपनी माँसाहेब के पेट में थे. माँसाहेब इसी वजह से अंतिम संस्कार में शामिल ना हो पाई. लेकिन आगे १६३३ में बाल शिवबा एवं माँसाहेब जिजाऊ यह सिंदखेडराजा नगरी में लौट आए. यहीं सिंदखेडराजा नगरी के राजमहल में शिवाजी राजे का बचपन बीत गया. शिवबा को स्वराज्य की प्रेरणा यहीं से मिली. स्वराज्य की कड़वी एवं महत्वपुर्ण पाठ यहीं से शिवाजीराजे को मिले. इसी मातृभूमी से नए स्वराज्य स्थापना की नींव रखी गयी. ऐसी महत्वपुर्ण घड़ी इतिहास के अभ्यासक श्री. विनोद ठाकरे जी ने स्पष्ट की.

लखुजी राजे जाधव यह उस दौरान का सबसे बड़ा भुईकोट कोलकोट नाम से जाने जाना वाला बुरूज का निर्माण कर रहे थे. इसी दौरान निजाम को उनके तह की आशंका उपस्थित हो गयी. उन्होंने वह निर्माण कार्य बंद कर दिया. इसके चलते आज भी वह निर्माण अधुरा दिखाई देता है. इसी स्थान पर पुरातत्त्व विभाग की और से एक वस्तुसंग्रहालय का निर्माण किया जा रहा है.

लखुजी राजे जाधव के पश्चात आज भी जाधव घराणे की वंश परंपरा इसी सिंदखेडराजा नगरी के आसपास दिखाई देती है. लखुजी राजे जाधव जब थे तब इसी राजमहाल में म्हाळसा राणी जिजाऊ की माँसाहेब के नाम से एक लकडीमहल बनाया गया ऐसी कहाणी या ऐतिहासिक बात कही जाती है.
इसी महाल के निचले हिस्से से बचावकार्य के लिए एक भुलभुलैय्या जैसा भुयारी मार्ग है. जो शत्रु का ध्यान विचलित कर खुद की सुरक्षा के लिए बनाया गया है.

सिंदखेडराजा शहर के आसपास ऐसी अनेक ऐतिहासिक वास्तु है, जो जाधव राजघराणे का इतिहास बयां करती है. यहाँपर स्थित राजमहल की पाणी व्यवस्था का उत्तम निर्माण मोती तलाव और चांदणी तलाव से प्रसिद्ध है. इसी दोनों तालाबों में से राजमहल और वतन के प्रमुख हिस्सों तक सुसज्ज यंत्रणा के माध्यम से स्वच्छ एवं थंडा पाणी १२ महिने २४ घंटे उपलब्ध था. लखुजी राजे की अकाल मृत्यू के बाद उनकी एवं उनके ३ पुत्रों की भारत में सबसे बड़ी हिंदवी राज्य की समाधी देखने के लिए उपलब्ध है. इस समाधी को घुमट भी कहा जाता है. समाधी के बाहर प्रमुख सैन्य वर्ग की समाधी का निर्माण किया गया है.

सन् १९८९ तक यह जन्मभूमी नजरंदाज थी, मराठा सेवा संघ और पुरुषोत्तम खेडेकर जी ने यह परिसर स्वच्छ कर, पहली बार जिजाऊ जयंती मनाई. शुरवाती तौर पर ३ साल यह जयंती तिथी नुसार मनाई जा रही थी. लेकिन तिथी के अनुसार यह जयंती हर साल अलग-अलग तारीख पर आती थी.

प्रथमतः जिजाऊ जन्मदिवस तारीख के अनुसार मनाया जाए इसका फैसला किया गया. इसके बाद शिवजयंती भी तारीख के अनुसार मनाए जाने का फैसला किया गया. जिजाऊ जन्मस्थान, राजमहल की दुरावस्था के चलते इस परिस्थिती को ध्यान में रखकर जिजाऊ जन्मोत्सव शुरु किया गया. आज १९९२ से २०२० तक के यात्रा में १२ जनवरी को सिर्फ राज्य से ही नहीं बल्की देश-विदेश से ५ लाख लोगों से अधिक मात्रा में जिजाऊ एवं शिवभक्त यहाँपर आते है. कुछ लोगों ने शुरु किया हुआ यह उत्सव राज्य में बेहद प्रसिद्ध है. हर साल बड़ी धुमधाम से यह जन्मोत्सव मनाया जाता है. यह जानकारी मराठा सेवा संघ के संस्थापक श्री. पुरुषोत्तम खेडेकर जी ने दी है.

यह ऐतिहासिक वास्तु इतना बड़ा इतिहास का साक्षी देता है, सिंदखेडराजा नगरी, छत्रपती शिवराय इनका बचपन यहाँपर बीता हुआ है, माँसाहेब का बचपन यहाँपर बीता हुआ है, यह महत्वपुर्ण घटनांए जो राजमहल और सिंदखेडराजा नगरी को साक्ष देती है, इस राजमहल और सिंदखेडराजा नगरी की और पुरातत्त्व विभाग एवं भारत सरकार नजरअंदाज करती हुई दिखाई देती है.

यह महत्वपुर्ण आरोप यहाँ के माजी नगराध्यक्ष नाज़ेर काझी एवं नागरीक अॅड. संदीप जी मेहेत्रे जी ने वार्तालाप के दौरान किया है. इसलिए आनेवाले समय में महाराष्ट्र का इतिहास बयां करनेवाले वास्तुओंका संरक्षण करके यह इतिहास विश्व के सामने लाने के लिए बेहतर प्रयास होने चाहीए ताकी इतिहास, इतिहास के रुप में बना रहें.

-प्रफुल खंडारे
एस सॉफ्ट ग्रुप इंडिया