Pandit Jawaharlal Nehru Unknown Facts in Hindi: जवाहरलाल नेहरू महात्मा गांधी के कंधे से कंधा मिला कर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़े। चाहे असहयोग आंदोलन की बात हो या फिर नमक सत्याग्रह या फिर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की बात हो l उन्होंने गांधी जी के हर आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। नेहरू की विश्व के बारे में जानकारी और समझ से गांधी जी काफ़ी प्रभावित थे और इसीलिए आज़ादी के बाद वे उन्हें प्रधानमंत्री पद पर देखना चाहते थे।
पंडित जवाहरलाल नेहरू: तथ्यों के आईने में
देश के इतिहास में एक ऐसा मौक़ा भी आया था जब महात्मा गांधी को स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पद के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल और जवाहरलाल नेहरू में से किसी एक का चयन करना था। लौह पुरुष के सख्त और बागी तेवर के सामने नेहरू का विनम्र राष्ट्रीय दृष्टिकोण भारी पड़ा और वे न सिर्फ़ इस पद पर चुने गए बल्कि उन्हें सब से लंबे समय तक विश्व के सब से विशाल लोकतंत्र की बागडोर संभालने का गौरव भी हासिल हुआ।
गांधी जी के विचारों के प्रतिकूल जवाहरलाल नेहरू ने देश में औद्योगीकरण को महत्व देते हुए भारी उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहन दिया। विज्ञान के विकास के लिए 1947 में नेहरू ने ‘भारतीय विज्ञान कांग्रेस’ की स्थापना की। उन्होंने कई बार ‘भारतीय विज्ञान कांग्रेस’ के अध्यक्ष पद से भाषण दिया।
भारत के विभिन्न भागों में स्थापित वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अनेक केंद्र इस क्षेत्र में उन की दूरदर्शिता के स्पष्ट प्रतीक हैं। खेलों में नेहरू की व्यक्तिगत रुचि थी। उन्होंने खेलों को मनुष्य के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए आवश्यक बताया।
एक देश के दूसरे देश से मधुर संबंध क़ायम करने के लिए 1951 में उन्होंने दिल्ली में प्रथम एशियाई खेलों का आयोजन करवाया। समाजवादी विचारधारा से प्रभावित नेहरू ने भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद की स्थापना का लक्ष्य रखा। उन्होंने आर्थिक योजना की आवश्यकता पर बल दिया।
वे 1938 में कांग्रेस द्वारा नियोजित ‘राष्ट्रीय योजना समिति’ के अध्यक्ष भी थे। स्वतंत्रता पश्चात वे ‘राष्ट्रीय योजना आयोग’ के प्रधान बने। नेहरू जी ने साम्प्रदायिकता का विरोध करते हुए धर्मनिरपेक्षता पर बल दिया। उन के व्यक्तिगत प्रयास से ही भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया था।
जवाहरलाल नेहरू ने भारत को तत्कालीन विश्व की दो महान शक्तियों का पिछलग्गू न बना कर तटस्थता की नीति का पालन किया। नेहरू जी ने निर्गुटता एवं पंचशील जैसे सिद्धान्तों का पालन कर विश्व बन्धुत्व एवं विश्वशांति को प्रोत्साहन दिया।
उन्होंने पूंजीवाद, साम्राज्यवाद, जातिवाद एवं उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ आखरी सांस तक संघर्ष किया। अपने क़ैदी जीवन में जवाहरलाल नेहरू ने ‘डिस्कवरी ऑफ़ इण्डिया’, ‘ग्लिम्पसेज ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री’ एवं ‘मेरी कहानी’ नामक ख्यातिप्राप्त पुस्तकों की रचना की।
पंडित नेहरू के योगदान को देश-दुनिया भूल नहीं पाती लेकिन इस के साथ ही उन के बारे में कई तरह के मिथक, कई तरह की गलत धारणाएं और गलत फहमीया भी प्रचलित हैं l भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से जुड़ी कई अफवाहें आज-कल वॉट्सऐप या सोशल मीडिया साइट्स पर फैलाई जा रही हैं l
इन सभी मिथक, गलत धारणाओं एवं गलत फहमीयों की सच्चाई जानने की कोशिश की जाए तो आसानी से यह पता चल जाएगा कि पूर्व प्रधानमंत्री पर लगाए गए यह सभी आरोप बेबुनियाद हैं l इन आरोपों का तार्किक खंडन नेहरू से जुड़ी या खुद उन के द्वारा लिखी गई किताबों में आसानी से मिल जाएगा l प्रस्तुत लेख में नेहरू जी पर लगाए जाने वाले कुछ बेबुनियाद आरोपों की तथ्यों की रौशनी में समीक्षा की गई हैं l
Pandit Jawaharlal Nehru Unknown Facts in Hindi
1) सुभाष चंद्र बोस का सम्मान नहीं किया
नेहरू के बारे में एक मिथक यह प्रचारित किया जाता है कि वे सुभाष चंद्र बोस के विरोधी थे और उन्होंने उन का सम्मान नहीं किया l यह सच है कि गांधी जी और नेहरू का सुभाष चंद्र बोस से तीखा वैचारिक मतभेद था लेकिन यह कहीं से भी मनभेद नहीं था और दोनों नेता एक-दूसरे का सम्मान करते थे l
सुभाष चंद्र बोस की मौत के बाद नेहरू नेता जी की बेटी को नियमित पेंशन भिजवाया करते थे l यही नहीं, परिवार की निजता और नेता जी का सम्मान करते हुए आर्थिक मदद की बात को गुप्त रखा गया l सुभाष चंद्र बोस के लिए नेहरू अपने पिता के खिलाफ तक खड़े हो गए थे l
असल में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में गांधी जी के समर्थन से एक ‘डोमिनियन स्टेट्स’ का प्रस्ताव आया था लेकिन सुभाष चंद्र बोस ने इस प्रस्ताव के खिलाफ संशोधन पेश किया कि भारत को संपूर्ण आजादी से कम कुछ नहीं चाहिए l
पंडित नेहरू ने गांधी जी और मोतीलाल नेहरू के खिलाफ जाने वाले इस संशोधन का पुरजोर समर्थन किया l यही नहीं, जिस सुभाष बाबू से नेहरू का तीखा वैचारिक मतभेद था उन्हीं के नारे ‘जय हिंद’ को नेहरू ने देश का नारा बना दिया l 15 अगस्त को लाल किले से दिए जाने वाले संबोधन में नेहरू ने ‘जय हिंद’ बोलना शुरू किया l
सुभाष चंद्र बोस की मौत के बाद आजाद हिन्द फौज (आईएनए) के हजारों सैनिकों-अधिकारियों को ब्रिटेन की कैद से निकालने और उन्हें कोर्ट मार्शल से बचाने के लिए के लिए नेहरू ने ‘आईएनए डिफेंस कमिटी’ बनाई l वे खुद इन सैनिकों के वकील बने और काला चोगा धारण कर उन की पैरवी की l
2) भगत सिंह से जेल में मिलने नहीं गए
नेहरू के बारे में यह मिथक भी प्रचलित है कि जब क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह जेल में बंद थे और उन्हें फांसी की सजा दी गई थी तो नेहरू उन से मिलने कभी भी जेल में नहीं गए l यह बात गलत है l नेहरू देश के उन चुनींदा बड़े नेताओं में से थे जो जेल में जा कर भगत सिंह और उन के साथियों से मिले थे l
नेहरू ने भगत सिंह के हिंसा के रास्ते की कभी तारीफ नहीं की लेकिन उन की बहादुरी और देशप्रेम की सार्वजनिक रूप से प्रशंसा की l महात्मा गांधी के अलावा भगत सिंह ही ऐसे व्यक्ति थे जिन की नेहरू ने सब से ज्यादा तारीफ की l 8 अगस्त 1929 को जवाहर लाल नेहरू ने जेल में बंद भगत सिंह और उन के साथियों से मुलाकात की और 9 अगस्त को उन्होंने लाहौर में वक्तव्य दिया l
3) सरदार पटेल और नेहरू में नहीं पटती थी
यह सच है कि पंडित नेहरू और पटेल के बीच कई मसलों पर तीखे वैचारिक मतभेद रहे हैं लेकिन यहां भी यह कहा जा सकता है कि यह मनभेद नहीं था l दोनों में आर्थिक मसलों और सांप्रदायिकता के मसलों पर कुछ वैचारिक मतभेद थे l कई बार दोनों के बीच ऐसे तीखे वैचारिक मतभेद हुए कि दोनों इस्तीफा देने तक को तैयार हो गए l
लेकिन राष्ट्र निर्माण के लिए दोनों मिलजुल कर काम करते रहे l नेहरू के मार्गदर्शन में ही सरदार पटेल ने देश की 500 से भी ज्यादा रियासतों के एकीकरण और विलय का अनूठा कार्य पूरा किया l महात्मा गांधी की हत्या के बाद काफी दुखी सरदार पटेल ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने का फैसला किया l
इस के बाद नेहरू ने उन्हें पत्र लिखा: ‘जब बापू जीवित थे तब हम ने साथ-साथ बापू से मिलने और उन से उन बातों की चर्चा करने की आशा रखी थी, जिन्होंने हमें कुछ हद तक परेशान कर रखा था l अपने अंतिम पत्र में मैंने यह आशा व्यक्त की थी कि मत और स्वभाव के कुछ मतभेदों के बावजूद हमें साथ-साथ काम करते रहना चाहिए, जैसा कि हम ने इतने लंबे समय तक किया है l यह जान कर मुझे आनंद होता है कि बापू की अंतिम राय भी यही थी l
4) अंग्रेजी भाषा- कल्चर को बढ़ावा दिया, संस्कृत के विरोधी
पंडित नेहरू लंदन में पढ़े थे लेकिन अपनी माटी से पूरी तरह से जुड़े थे l उन के बारे में अक्सर लोग यह धारणा बना लेते हैं कि उन्होंने देश में अंग्रेजी भाषा, संस्कृति को बढ़ावा दिया l लेकिन सच तो यह है कि वे मातृभाषा, संस्कृत और स्वदेशी-खादी को बढ़ावा देने के समर्थक थे l आजादी के बाद देश में भाषा का मुद्दा गरमा गया l
तब नेहरू ने 6 दिसंबर 1948 को सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा, ‘भाषा का सवाल बहुत तर्क-वितर्क का विषय बन गया है l मेरे ख्याल से राज्य की बुनियादी नीति यह होनी चाहिए कि बच्चे की बुनियादी शिक्षा उस की मातृभाषा में हो, ऐसा करने पर बहुत से बच्चों को इस से फायदा होगा l
संस्कृत के बारे में नेहरू ने लिखा था, ‘मुझे संस्कृत बहुत ज्यादा नहीं आती, फिर भी मैं संस्कृत का बड़ा मुरीद हुँ l मुझे उम्मीद है कि आने वाले वक्त में संस्कृत को बड़े पैमाने पर पढ़ा जाएगा l
5) अनुच्छेद 370 नेहरू की वजह से ही लागू हुआ
एक यह धारणा बनी हुई हैं कि अनुच्छेद 370 पंडित नेहरू की वजह से ही लागू हुआ और सरदार पटेल इस के विरोधी थे l लेकिन यह बात भी सच नहीं है l सच तो यह है कि सरदार पटेल ने अनुच्छेद 370 को कश्मीर के लिए जरूरी बताया था l
जब संविधान सभा में अनुच्छेद 370 पर बहस हो रही थी तो उस समय नेहरू देश से बाहर थे और सरदार पटेल ने इस पर हुई बहस की जानकारी नेहरू को दी थी l खुद सरदार पटेल ने संविधान सभा में बहस के दौरान इस बारे में तर्क दिया था कि कश्मीर की विशेष समस्याओं को देखते हुए उस के लिए अनुच्छेद 370 जरूरी है l
जवाहर लाल नेहरू ने 25 जुलाई 1952 को मुख्यमंत्रियों को लिखे अपने एक पत्र में कहा था, ‘जब नवंबर 1949 में हम भारत के संविधान को अंतिम रूप दे रहे थे तब सरदार पटेल ने इस मामले को देखा l तब उन्होंने जम्मू और कश्मीर को हमारे संविधान में एक विशेष किंतु संक्रमणकालीन दर्जा दिया l
इस दर्जे को संविधान में अनुच्छेद 370 के रूप में दर्ज किया गया l इस के अलावा 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से भी इसे दर्ज किया गया l इस अनुच्छेद के माध्यम से और इस आदेश के माध्यम से हमारे संविधान के कुछ ही हिस्से कश्मीर पर लागू होते हैं l’
6) रंगीन मिजाजी के आरोप
नेहरू को बदनाम करने के लिए सोशल मीडिया पर खूब रायता फैलाया गया है l उन के बारे में तमाम फोटोज जारी कर उन्हें अय्याश बताया जाता है l
असल में यह कल्चरल गैप की वजह से भी होता है l नेहरू देश के जिस क्रीमी लेयर या संपन्न परिवार से आते थे वहां औरतों के साथ उठना-बैठना, गले मिलना, सिगरेट पीना आम बात थी लेकिन एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जिसे ऐसा एक्सपोजर नहीं होता और उस की संस्कृति अलग है l ऐसे लोग नेहरू को अय्याश साबित कर देते हैं l
यही नहीं, इस के बारे में कई बार तो किसी फोटो का गलत संदर्भ दे दिया जाता है या उस का फोटोशॉप कर दिया जाता है l जैसे नेहरू की एक जवान लड़की के साथ गले मिलते हुए फोटो शेयर की जाती है, जबकि यह तस्वीर किसी अंग्रेज महिला की नहीं बल्कि एक भारतीय महिला की ही है l
यह भारतीय महिला और कोई नहीं बल्कि नेहरू की भांजी नयनतारा सहगल हैं l नयनतारा सहगल जवाहर लाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित की दूसरी बेटी हैं l
7) वंशवाद को बढ़ावा दिया
नेहरू के बारे में एक धारणा यह प्रचारित की जाती है कि उन्होंने वंशवाद को बढ़ावा दिया l इस की वजह यह है कि उन की बेटी इंदिरा भारत की प्रधानमंत्री बनीं और उस के बाद उन के परिवार का देश में लंबे समय तक शासन रहा l सच यह है कि नेहरू यह नहीं चाहते थे कि उन की बेटी इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनें l
गांधी परिवार को अगर राजनीति में किसी ने आगे बढ़ाया है तो वह इंदिरा हैं, नेहरू नहीं l वैसे भी इंदिरा गांधी को नेहरू की मौत के बाद तत्काल प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया था बल्कि तब लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने थे l हाँ यह जरूर सच है कि इंदिरा गांधी पहले स्वतंत्रता संग्राम और बाद में कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय थीं, जिस की वजह से उन्होने अपना एक अलग स्थान बना लिया था l
8) गांधी जी के योग्य उत्तराधिकारी नहीं थे
नेहरू के बारे में यह सब से जबरदस्त धारणा फैली हुई है कि वे गांधी जी के योग्य उत्तराधिकारी नहीं थे और उन से बेहतर पटेल थे जिन्हें भारत का पहला प्रधानमंत्री बनना चाहिए था l लेकिन सच यह है कि नेहरू की योग्यता सरदार पटेल ने भी स्वीकार की थी और उन्होंने नेहरू के नेतृत्व में काम करना स्वीकार किया था l
गांधी ने पंडित नेहरू को देश का पहला प्रधानमंत्री इसलिए बनाया क्योंकि उन की स्वीकार्यता देश के हर इलाके और हर वर्ग तक थी l उन के बाकी विकल्प जैसे सरदार पटेल, राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद आदि कुछ वर्गों और इलाकों तक जनाधार रखने वाले नेता थे l वे निर्विवादरूप से गांधी के बाद कांग्रेस के सब से बड़े नेता बन गए थे l
9) तानाशाही नजरिया रखते थे
नेहरू के बारे में एक मिथक यह भी है कि वे तानाशाही तरीके से काम करते थे l इस धारणा के बनने की एक वजह यह भी हो सकती है कि नेहरू का कोई बहुत करीबी मित्र नहीं बन पाया और वे अपना कोई उत्तराधिकारी भी नहीं खड़ा कर पाए l लेकिन सच यह है कि उन्होंने देश में लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ाने के लिए काफी काम किया l
वे अभिव्यक्ति की आजादी के प्रबल समर्थक थे l यही नहीं, आजादी के बाद जो मंत्रिमंडल बना उस में पंडित नेहरू अपने को सब से बड़ा नहीं बल्कि ‘First Among Equals’ यानी बराबर के लोगों में प्रथम मानते थे l वे तो इस मामले में यहां तक लोकतांत्रिक थे कि उन्हें एक बार सरदार पटेल ने समझाया कि वे प्रधानमंत्री हैं और बाकी कैबिनेट मंत्रियों के काम में दखल दे सकते हैं l
10) अपने आर्थिक मॉडल से देश को बर्बाद किया
नेहरू के आर्थिेक मॉडल को भी देश की कथित ‘बर्बादी’ की एक वजह माना जाता है l उन की आर्थिक नीति असल में साम्यवाद और पूंजीवाद का एक घालमेल थी जिसे नेहरूवादी समाजवाद भी कहा गया l
यह ठीक है कि आज उन की नीतियां कुछ अजीबोगरीब लगती हैं लेकिन आज के 70 साल पहले के भारत के लिए ऐसी नीति जरूरी थी, जिस को अंग्रेज पूरी तरह से चूस कर गए थे और जहां खाने का अनाज तक आयात करना पड़ता था l एक गरीब देश में घोर पूंजीवाद को लागू नहीं किया जा सकता था l
लोककल्याण जरूरी था और उद्योगों का संरक्षण भी l इसलिए नेहरू ने बड़ी-बड़ी सरकारी कंपनियां यानी पीएसयू की स्थापना की जो ब्रेड से ले कर स्टील तक के उत्पादन में शामिल थीं l देश में बिजली, पानी, सड़क, खनन जैसे सभी क्षेत्रों में भारी पूंजी लगाने की जरूरत थी और तब निजी क्षेत्र इतना विकसित नहीं था कि उसे यह काम सौंपा जा सके l
11) क्या नेहरू के पूर्वज मुगल थे?
इस सवाल का जवाब नेहरू ने अपनी आत्मकथा के पहले सफ़हे पर ही दिया है l उन्होंने अपनी आत्मकथा (जो कि जून 1934 से फरवरी 1935 के दरमियान जेल में लिखी थी) में बताया है कि वे कश्मीरी हैं और उन के पूर्वज 18वीं सदी की शुरुआत में धन और यश कमाने के लिए कश्मीर की तराइयों से नीचे के उपजाऊ मैदान में आए थे l 18वीं सदी की शुरुआत में मुगल साम्राज्य के अंत की भी शुरुआत लगभग होने लगी थी l
उन दिनों फर्रुखसियर मुगल बादशाह था l नेहरू के जो पुरखे सब से पहले नीचे आए थे उन का नाम था राजकौल l जिन का नाम कश्मीर के संस्कृत और फारसी के विद्वानों में शामिल होता था l आत्मकथा के मुताबिक फर्रुखसियर जब कश्मीर गया तब उस की मुलाकात राजकौल से हुई और मुगल बादशाह के कहने पर ही राजकौल का परिवार कश्मीर से दिल्ली आया
दिल्ली आने के बाद राजकौल को कुछ जागीर और एक मकान दिया गया l नेहरू के मुताबिक मकान नहर के किनारे था l इसी के कारण उन के कौटुम्बिक नाम कौल के साथ नेहरू जुड़ गया l जिस के बाद वे कौल-नेहरू हो गए l जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि आगे चल कर कौल तो गायब हो गया और महज नेहरू रह गया l
12) कौल से नेहरू हुआ परिवार
जवाहरलाल नेहरू के मुताबिक इसी दरमियान उन के परिवार के वैभव का अंत हो गया और जागीर भी तहस नहस हो गई l इसी किस्से को लिखते हुए नेहरू बताते हैं कि उन के परदादा का नाम लक्ष्मीनारायण नेहरू था जो कि दिल्ली के बादशाह के दरबार में कंपनी सरकार के पहले वकील बने l
जवाहरलाल नेहरू के मुताबिक उन के दादा गंगाधर नेहरू की 34 साल की उम्र में मृत्यु हो गई थी और वे 1857 की क्रांती के कुछ समय पहले तक दिल्ली के कोतवाल भी रहे थे l
तीन साल कानपुर में वकालत करने के बाद मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद आ गए और हाईकोर्ट में वकालत शुरू की l 1857 के समर के बाद उन के परिवार के तमाम दस्तावेज तहस-नहस हो गए और सब कुछ लगभग खत्म होने के बाद उन का परिवार अन्य लोगों के साथ आगरा जा बसा l
नेहरू के मुताबिक उस समय तक उन के पिता का जन्म नहीं हुआ था l आगरा में ही 6 मई 1861 को उन के पिता मोतीलाल नेहरू का जन्म हुआ l उन के दो बड़े भाई भी थे जो परिवार का पालन कर रहे थे l बंशीधर नेहरू (जिन्हें जवाहर बड़े चाचा कहते थे) ब्रिटिश सरकार के न्याय विभाग में नौकर थे और दूसरे चाचा नंदलाल नेहरू राजपूताना की एक रियासत के दीवान बन गए थे l
13) नेहरू परिवार आगरा से इलाहाबाद कैसे पहुंचा?
नंदलाल नेहरू ने कानून की पढ़ाई करने के बाद आगरा में वकालत शुरू की और उन्ही के साथ जवाहरलाल नेहरू के पिता काम करने लगे l नेहरू के छोटे चाचा (नंदलाल) हाई कोर्ट जाया करते थे और जब हाई कोर्ट इलाहाबाद चला गया तो उन का परिवार भी इलाहाबाद जा बसा और यहीं जवाहरलाल नेहरू का जन्म भी हुआ l
जिस समय मोतीलाल नेहरू कानपुर और इलाहाबाद के कॉलेज में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तब तक उन के भाई इलाहाबाद के नामी वकीलों में पहचाने जाने लगे थे l कॉलेज से गोल्ड मेडल हासिल करने के बाद मोतीलाल नेहरू भी कानपुर की जिला अदालतों में वकालत करने लगे थे l
तीन साल कानपुर में वकालत करने के बाद मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद आ गए और हाईकोर्ट में वकालत शुरू की l इसी दरमियान उन के बड़े भाई नंदलाल नेहरू की मौत हो गई l जिस के बाद उन के सभी केस मोतीलाल नेहरू को मिल गए l अपनी तेज तर्रार तकरीरों से मोतीलाल नेहरू की गिनती भी इलाहाबाद हाई कोर्ट के नामी वकीलों में होने लगी थी l जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1886 को इलाहाबाद में ही हुआ था l
इन तथ्यों के आधार पर देखा जाए तो आज-कल जो भी अफवाहें, मिथक, गलत धारणाए और गलत फहमीया भारत के पहले प्रधानमंत्री के नाम और इतिहास को ले कर फैलाई जा रही हैं वह सच न हो कर महज व्यक्तिगत या निजी हित को साधने का प्रयास मात्र है l
प्रा. शेख मोईन शेख नईम
सहायक प्राध्यापक,
School of Law, आई.टी.एम. विश्वविद्यालय, ग्वालियर