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दोस्तों, आज हम गौतम बुद्ध के आर्य अष्टांगिक मार्ग के बारे में बात करेंगे, जो हमें दुख से निर्वाण तक ले जाने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं. दुखों को दूर करने के उपायों में ही बुद्ध ने ये अष्टांगिक मार्ग बताए हैं. आइए एक बार उन पर नजर डालें, उसके बाद हम एक-एक करके सभी के बारे में विस्तृत से जानेंगे:
1. सम्यक दृष्टि (Right View)
2. सम्यक संकल्प (Right Resolve)
3. सम्यक वाणी (Right speech)
4. सम्यक कर्म (Right Action)
5. सम्यक आजीविका (Right Livelihood)
6. सम्यक व्यायाम (Right Effort)
7. सम्यक स्मृति (Right Mindfulness)
8. सम्यक समाधि (Right Concentration)
गौतम बुद्ध ने इन सभी अष्टांगिक मार्ग की शुरुआत में सम्यक शब्द का उपयोग किया है. जिसका अर्थ होता है ‘ठीक’ या ‘सही‘. चलिए अब इन्हें हम विस्तृत में देखें
1. सम्यक दृष्टि:
सम्यक दृष्टि का अर्थ है पक्षपात, धारणाओं, शास्त्रों, धर्म, जाति, ऊंच-नीच, भेदभाव, पद आदि से मुक्त दृष्टि. आंखें खाली हो, उनमें किसी भी तरह से विचार या भाव ना हो. जो है, जैसा है बस वैसा ही देखना. अर्थात जब भी हम कुछ देखें उसमें किसी भी तरह का पक्षपात, धारणा या मत आदि ना हो. उदाहरण के लिए कबीरजी को हिंदू या मुसलमान की दृष्टि से ना देखें. बल्कि वह एक संत या सद्गुरु थे, यह देखें.
2. सम्यक संकल्प:
सम्यक संकल्प का अर्थ है कि किसी भी कार्य को हठ, ज़िद, अहंकार, प्रतियोगिता या सामाजिक दिखावे के कारण नहीं, बल्कि अपने स्वयं के बोध, समझ या जीवन अनुभव के कारण करें. किसी भी कार्य को इसलिए करें, क्योंकि उसमें कोई सार है या वह कार्य करने योग्य है, इसलिए नहीं कि यह कार्य मैं करके दिखाऊंगा. कुछ लोग तो संन्यास भी हठ, जिद, अहंकार या प्रतियोगिता के कारण ले लेते हैं, जिससे वे ना तो संसार के होते हैं और ना ही अध्यात्म के रहते हैं.
3. सम्यक वाणी:
सम्यक वाणी का अर्थ है जो है, जैसा है, वैसा ही कहना. जो हमने स्वयंं के बोध सेे जैसे जाना है, वही बोलना. जितना आवश्यक हो, केवल उतना ही बोलना. हमारी वाणी में किसी भी प्रकार का अहंकार ना हो, और ना ही हम उससे किसी को दुख पहुंचाए. हमारे बोलने में किसी भी व्यक्ति की निंदा ना हो और ना ही किसी का अहित हो. जो भी कहे दिल से कहे. मन में किसी भी प्रकार की चालाकी या छुपे इरादे ना हो. कुछ लोग बाहर से कुछ और बोलते हैंं लेकिन परंतुु उनके मन में कुछ और होता है. कुछ लोग बहुत झूठ बोलते हैं या अपने अनुभव को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं कुछ अनावश्यक बातें बोलतेे हैं. कुछ दूसरों को दुख पहुंचाने, नीचा दिखाने या अपना अहंकार, हैसियत और अकड़ दिखाने के लिए बोलते हैं. यह सब गलत, खराब और असम्यक वाणी के उदाहरण हैं. ऐसी खराब वाणी से हमारे जीवन में बहुत सी समस्याएं, दुख, झगड़े, मनमुटाव, बिछड़न, दुश्मनी आदि आ सकती है.
4. सम्यक कर्म:
सम्यक कर्म का अर्थ है कि व्यर्थ के काम ना करें, जो सार्थक और आवश्यक हो वहीं करें. वही कार्य करें, जिनका जीवन में कोई सार हो और जो हमारे ह्रदय की गहराई से आएं, अर्थात जो हमारा दिल कहने को करें. दूसरों को देखकर कार्य ना करें. किसी को हराने या नीचा दिखाने या किसी से आगे निकलने के लिए किये कार्य से हम व्यर्थ के कामों में उलझ जाते हैं, जिनमें हमारा कीमती समय, ऊर्जा, और श्रम नष्ट होता है.
5. सम्यक आजीविका:
सम्यक आजीविका का अर्थ है अपने जीवन निर्वाह के लिए दूसरोंं का अहित ना करें और ना ही उनका जीवन खराब करें. आजीविका कमानेे का कार्य ऐसा हो, जिससे दूसरोंं को कभी भी, किसी भी प्रकार से कष्ट या तकलीफ ना हो. उन्हें किसी भी तरह से धोखा ना दिया जा रहा हो. उन्हें किसी भी प्रकार से बीमारियां ना लगे और उस कार्य में किसी भी प्रकार के जानवर या पक्षी की हत्या ना हो. उदाहरण के लिए शराब, तंबाकू, गुटखा, सिगरेट, बीडी, नशे की चीजें, मिलावट, धोखाधड़ी, वेश्यावृत्ति आदि आपराधिक कार्यों से जीविका कमाना सही नहीं है. गलत कार्य को करने से कर्म बंधन बंधता है और जीवन में मुसीबतें और कष्ट बढ़ने लगते हैं.जब हम हमारे मन की बात सुनकर कोई कार्य करते हैं, तो हमारे मन में शांति और संतुष्टि का अहसास होता है और हमें अपने काम का बोझ या तनाव भी महसूस नहीं होता. शांत मन से अध्यात्म की यात्रा सुगम हो जाती है.
6. सम्यक व्यायाम:
सम्यक व्यायाम का अर्थ है कि व्यक्ति को ना तो ज्यादा आलसी होना चाहिए और ना ही ज्यादा कर्मठ होना चाहिए. अर्थात उसे बिल्कुल सुस्त होकर बैठना भी नहीं चाहिए और ना ही लगातार कर्म में ही लगा रहना चाहिए. सुस्त इंसान बिना मेहनत के ही सब कुछ पाना चाहते हैं और कर्मठ व्यर्थ के कामों में उलझे रहते हैं, जिससे उनके जीवन का काफी मूल्यवान समय नष्ट होता है. करने योग्य कर्मों को धैर्य और शांत मन से करें.
7. सम्यक स्मृति:
सम्यक स्मृति का अर्थ है कि होश में जीना अर्थात स्मरण रखते हुए जीना. जीवन के सभी कार्यों को गौर से देखते हुए होश में करना. उठना, बैठना, चलना, बोलना हर कार्य होश रखकर करें. कुछ लोग पैसा या धन दौलत इकट्ठा करने की धुन में अपना स्वास्थ्य, परिवार और जीवन सब कुछ खो देते हैं. यह बेहोशी ही है. जो सार्थक या मूल्यवान है उसे छोड़ देते हैं और जो मृत्यु के साथ एक दिन समाप्त हो जाएगा, उसे पाने के लिए अपना पूरा जीवन व्यर्थ गंवा देते हैं.
8. सम्यक समाधि:
सम्यक समाधि का अर्थ है अपने होश में ली हुई समाधि. अर्थात समाधि भी बेहोशी में ना हो. कुछ लोग अफीम, गांजा आदि नशीली चीजों को लेकर गहरी मूर्छा या बेहोशी में चले जा रहे हैं. जब तुम अपने मन के भीतर झाँको तो बाहर आते वक्त प्रसन्न और प्रज्ञावान होकर ही लौटोगे. तुम्हारी चारों ओर रोशनी होगी.
यदि हम बुद्ध के आर्य अष्टांगिक मार्ग की शिक्षा का सार या निष्कर्ष निकाल कर देखें तो हमें पता चलेगा कि हमें हमारे जीवन के सभी दुख हमारे इच्छाओं, वासनाओं या तृष्णा के कारण ही उत्पन्न होते हैं. यह वासनाएं हमारी बेहोशी के कारण ही उत्पन्न होती है. इसलिए यदि हमें इनसे छुटकारा पाना है तो हमें हमेशा होश में जीना चाहिए और होश बनाने के लिए हमें लगातार ध्यान करना चाहिए.
आशा है बुद्ध के आर्य अष्टांगिक मार्ग से आपके जीवन का अंधकार और दुख नष्ट हो जाएंगे और जीवन में आप सफलता पाएँगे.
हमारा यह ‘बुद्ध के आर्य अष्टांगिक मार्ग ‘पर आधारित विशेष लेख पूरा पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद! हम आपके लिए रोज ऐसेही अच्छे लेख लेकर आते है. अगर आपको यह लेख पसंद आता है तो फेसबुक और व्हाट्सएप पर अपने दोस्तों को इसे फॉरवर्ड करना ना भूले. साथ ही हमारी वेबसाइट को रोजाना भेंट दे.
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© संतोष साळवे
एस सॉफ्ट ग्रुप इंडिया