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डिजिटल होना मतलब क्या?
ग्रामीण क्षेत्रों में “डिजिटल” शब्द दिमाग में आते ही, जो एकमात्र तस्वीर दिमाग में आती है वह यह है कि, हम इसके बारे में कुछ नहीं जानते हैं अथवा ये हमारे लिए बना ही नहीं है. ऐसा होने का एक मुख्य कारण यह हो सकता है की, अगर कोई चीज डिजिटल है तो संभावना है कि यह अंग्रेजी में ही होगा, लेकिन ऐसा नहीं है. भाषा और डिजिटल के बीच बहुत अधिक संबंध नहीं है.
हालाँकि डिजिटल होना आज की तकनीक के साथ एकीकरण करना है. टेक्नोलॉजी की कोई भाषा नहीं होती है. इस बात को अगर आसानी से कहें तो डिजिटल होना और तकनीक के अनुकूल होना मतलब पारंपरिक रूप से जो हम कर रहे हैं, उसे करते हुए अपना समय और श्रम बचाना होता है. मूल रूप से टेक्नोलॉजी इसी उद्देश्य के लिए है, या इसे बनाने का उद्देश्य भी यही है. आज के डिजिटल इंडिया में अगर हममें से प्रत्येक में थोड़े थोड़े से बदलाव आना शुरू हुए तो एक अच्छे परिणाम दिखने लगेंगे, लेकिन इसके लिए टेक्नोलॉजी का पूरक उपयोग महत्वपूर्ण है.

डिजिटल के बारे में क्यों पीछे है अपना देश?
अपना देश कई देशों में सॉफ्टवेयर सेवा प्रदान करता है, संभवतः उसी सेवाओं का उपयोग करके कई देश अपनी प्रगति कर रहे हैं. चुकी काफी ज्यादा बड़ी कंपनीयो के प्रमुख के रूप में हमारे भारतीय ही हैं, लेकिन ऐसी परिस्थितियों में भी अपना देश टेक्नोलॉजी का उपयोग कैसे और कितना कर रहा है? कॉलेज, क्लीनिक, दुकानें, होटल अभी तक ठीक तरीके से डिजिटल नहीं हुए हैं, इसका कारण जानकारी की कमी है, जिसके पास जानकारी होगी वही आजके युग में सक्षम है. डिजिटल इंडिया इसे हासिल कर सकता है. मेरा देश तभी सशक्त हो सकता है जब हम सब इसका समर्थन करके टेक्नोलॉजी को अपनाएंगे.
“If your business is not on the internet, then your business will be out of business.”
– Bill Gates
डिजिटल होने से जिंदगी आसान होती है.
डिजिटल माध्यम युवाओं के लिए विशेषकर समुदाय में सकारात्मक और उचित जानकारी प्रदान करने के लिए एक प्रभावी माध्यम है. स्कूलों में डिजिटल साक्षरता की आवश्यकता है. भारत का प्रगतिशील भविष्य इस स्कूल के छात्रों में है. कई स्कूल में डिजिटल सेवाओं के माध्यम से छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों के बीच की दूरी को कम होकर बेहतर शैक्षणिक माहौल बनाने की पहल हो रही हैं. इसके लिए और-अधिक छात्रों और अभिभावकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए स्कूल स्तर पर और-अधिक प्रयासों की आवश्यकता है.
स्कूल प्रबंधन और छात्र-शिक्षक-अभिभावक के बीच का अंतर काम करने की जरूरत है.
डिजिटल माध्यम और ऐप्स के माध्यम से इस अंतर को काम किया जा रहा है. माता-पिता के दृष्टिकोण भी बदल रहे हैं और बहुत सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है. अभिभावकों का अच्छा समर्थन मिलने लगा है.
स्कूल प्रबंधन करने में और अभिभावकों के बीच बेहतर संवाद के लिए मोबाइल एप्लीकेशन एक प्रभावी रूप में उपयोग किया जा सकता है. ऐसे मोबाइल एप्लीकेशन का उपयोग अन्य स्कूलों में भी बढ़ना चाहिए. माता-पिता भी ऐसे एप्लीकेशन के माध्यमों से सीधे स्कूल से जुड़ जाएंगे और इससे सभी को फायदा होगा.
मातृभाषा से शिक्षा देने से बच्चों की प्रौद्योगिक क्षमता भी विकसित होती है.
वर्तमान शिक्षण पद्धति में नए परिवर्तन किए जाने की आवश्यकता है. इंटरनेट का आज बच्चों पर सीधा प्रभाव पड़ता है. इसके लिए डिजिटल स्कूल की संकल्पना को लागू किया जाना चाहिए. आज दुनिया बदल रही है, इसलिए हमें भी बदलने की जरूरत है. तो ऐसा कुछ है जिसे बच्चे जल्दी समझ जाते हैं.
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डिजिटल होने का मतलब कुछ अलग करना नहीं है, डिजिटल होने का मतलब है कि आप कुछ करते हुए अपना मूल्यवान समय, श्रम की बचत करें. बस आपको अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है. हमारी दैनिक आदतों के कारण, हमारी मानसिकता ऐसी है कि कुछ नया अपनाने में संकोच होता है. लेकिन परिवर्तन प्रकृति का नियम है, और हम सभी प्रकृति का हिस्सा हैं.
-सागर वझरकर
एस सॉफ्ट ग्रुप इंडिया