kargil vijay diwas : दोस्तों, आज हम आपको कारगिल विजय दिवस के बारे में जानकारी देने जा रहा है. 26 जुलाई ये एक ऐसा दिन है, जब करगिल के पहाड़ों पर तिरंगा शान से फहराया था. कारगिल विजय दिवस पर जो कारगिल की लड़ाई हुई थी, उसमें कई राज छुपे है. उस समय क्या हुआ था, क्यों हुआ था, इसकी पूरी और ठोस जानकारी मिल पाना मुश्किल है. कारगिल विजय दिवस पर कई तरह की अलग-अलग कहानियां बताई जाती है. आज हम भी कारगिल विजय दिवस पर कुछ अहम तथ्य के बारे में बताने जा रहे हैं.
kargil vijay diwas : History of kargil war | कारगिल युद्ध के बारे में इतिहास
कारगिल युद्ध को भारतीय सेना द्वारा ‘ऑपरेशन विजय’ के नाम से जाना जाता है और वायु सेना ने इस मिशन को ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ नाम दिया है. ये वही लड़ाई है, जिसमें हमारे पड़ोसी राष्ट्र ने द्रास-कारगिल सेक्टर की पहाड़ियों पर अपना कब्जा जमाने की कोशिश की थी. हमारी जांबाज़ भारतीय सेना ने इस लड़ाई में पड़ोसी राष्ट्र की सेना और आतंकवादियों को पूरी तरह नेस्तनाबूद कर दिया था. आमतौर पर कारगिल युद्ध को 1948 और 1965 की पाकिस्तानी सेना द्वारा कश्मीर पर कब्जा करने की कोशिशों के रूप में ही देखा जाता है.
दरअसल इस कारगिल युद्ध को कश्मीर पर कब्जा करने और भारत की व्यवस्था को पूरी तरह अस्थिर करने का एक षड़यन्त्र माना जाता है. लेह और श्रीनगर को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग क्र -1 पर घुसपैठियों ने नियंत्रण स्थापित करने के मकसद से अहम स्थानों पर कब्जा जमा लिया था. भारत के वीर जवानों ने इस घुसपैठ का तुरंत पता लगाकर उसका मुंहतोड़ जवाब दिया. भारत-पाकिस्तान सेना के बीच युद्ध हुआ और पड़ोसी देश को गहरी शिकस्त खानी पड़ी. माना जाता है कि भारत ने कारगिल के युद्ध की जिम्मेवारी करीब 2,00,000 सैनिकों पर सौंपी थी. प्रत्यक्ष जंग के मैदान कारगिल द्रास क्षेत्र में लगभग 30,000 भारतीय सैनिक मौजूद थे. बताया जाता है कि इस युद्ध में Indian army के करीब 527 सैनिक शहीद हुए और 1300 से अधिक जवान घायल हुए थे. युद्ध करीब 60 दिन अर्थात 2 महीने तक चला और 26 जुलाई 1999 को खत्म हुआ. कारगिल की यह जंग दुनिया के सबसे ऊंचे स्थानों पर यानी कि करीब 18 हजार फीट की ऊंचाई पर लड़ी गई जंगों में शामिल है.
kargil vijay diwas : Reasons behind kargil war | कारगिल युद्ध होने के कारण
कारगिल युद्ध की शुरुआत 8 मई 1999 को हुई थी. जब कश्मीर के आतंकवादियों को कारगिल की चोटियों पर देखा गया था. मई 1999 में कश्मीर में रहने वाले एक ग्वाले की सूचना के बाद बटालिक सेक्टर में लेफ्टनेंट सौरभ कालिया के पेट्रोलिंग पर हमला हुआ. उस हमले पर उक्त इलाके में हुई घुसपैठ का पता भारतीय सेना को दिया गया. शुरुआत में हमारी भारतीय सेना ने इन घुसपैठियों को जिहादी समझा और उन्हें भगाने के लिए कम सैनिक भेजे गए. लेकिन प्रतिद्वंद्वियों की ओर से बढ़ते जवाबी हमले की तादाद और उनकी planned firing का हमारे जांबाजों ने तुरंत पता लगा लिया. और उन्हें ये पता चला कि घुसपैठियों के भेष में विरोधी सेना ही हमले कर रही है. साथ ही कई घुसपैठियों की मौजूदगी और उसके पीछे की बड़ी साजिश भारतीय सेना को पता चली.
इस युद्ध में भारतीय थल सेना के साथ-साथ भारतीय वायु सेना ने भी कारगिल में अपना मोर्चा संभाला. साथ ही भारतीय जल सेना ने अरब सागर में कराची तक के समुद्र मार्ग से हो रहे सभी तरह के आपूर्ति को रोकने के लिए पूर्वी इलाकों के जहाजों के समेत डट खड़े हुए. पाकिस्तानी घुसपैठियों के हमलों पर भारतीय सेना ने करारा जवाब दिया. कहां जाता है कि पाकिस्तान इस ऑपरेशन की तैयारी 1998 से कर रहा था. इस युद्ध के कुछ हफ्तों पहले ही पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख ने हेलीकॉप्टर से नियंत्रण रेखा पार की थी.
kargil vijay diwas : कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना की रणनीति
इस युद्ध में भारतीय वायु सेना की तरफ से mig-27, mig-29 जैसे फुर्तीले हवाई जहाजों का प्रयोग किया गया था. mig-27 fighter plane की मदद से सेना ने उन स्थानों पर बम गिराए, जहां पाक सैनिकों ने कब्जा किया था. इस युद्ध में विरोधियों के 2700 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे. पड़ोसी राष्ट्र को 1965 और 1971 की लड़ाई से भी ज्यादा नुकसान सहना पड़ा था. कारगिल के युद्ध की भीषणता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस युद्ध में वायुसेना के करीब 300 विमान उड़ान भरते हैं. इन हालातों में विमानों को 20,000 फिट से भी ज्यादा ऊंचाई पर उड़ना पड़ता था. इतनी ऊंचाई पर हवा का घनत्व 30% से भी कम होता था. इस वजह से पायलट का हवाई जहाज के अंदर ही दम घुटने की संभावनाएं ज्यादा थी.
कइयों का मानना है कि बोफोर्स तोपों की मदद से पहली बार भारतीय सेना दुश्मनों के करीब तक हमला करने में सक्षम हुए थे. इन तोपों ने दुश्मनों के पसीने पस्त कर दिए थे. इस वजह से भारतीय सेना का हौसला सातवें आसमान पर पहुंचा. इस युद्ध में कई तरह की अलग-अलग रणनीतिया अपनाई गई थी. उनमें से ही एक थी साइलेंट मूवमेंट रणनीति. अर्थात किसी भी भारतीय जवानों को गोली लगी या घायल भी हो गए, तो उन्हें कराहने की अनुमति नहीं दी गई थी. क्योंकि दुश्मनों को हमारी सेना का पता ना चलें. इसलिए ऐसे नियम बनाएं थे.
करीब 18,000 से 21,000 फुट की ऊंचाई से दुश्मनों को सेना पर हमला करना आसान नहीं था. कश्मीर की घाटी में बर्फबारी शुरू हुई थी. वहां गर्मी के महीनों में भी -10 डिग्री तापमान पर भी हमारे जांबाज जवानों ने दुश्मनों को शिकस्त दी. साथ ही इतनी ठंड का बहुत ज्यादा खामियाजा सेना को भुगतना ना पड़े, इस वजह से युद्ध को जल्द से जल्द खत्म करने का भी दबाव था. क्योंकि यहां पर बारिश के दौरान बॉर्डर पूरी तरह से ढक जाती है. इस वजह से सही दिशा में दुश्मनों का पता लगाना मुश्किल हो गया था. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई इनका इस युद्ध को जीतने में बहुत बड़ा हिस्सा है. वे खुद अपनी भारतीय सेना और पूरे भारतीय जनता का भी मनोबल बढ़ा रहे थे. और इन सभी बातों का परिणाम स्वरूप भारतीय सेना ने दुश्मनों को परास्त करते हुए पूरे कारगिल क्षेत्र को पुनः एक बार अपने कब्जे में ले लिया.
kargil vijay diwas : वीर सेनानियों को सम्मानित किया गया
कारगिल युद्ध में अपनी असीम शौर्य और सर्वोच्च बलिदान के लिए हमारे भारतीय सेना के मनोज कुमार पांडे, विक्रम बत्रा, योगेंदर सिंह यादव, संजय कुमार इन जांबाज सिपाहियों को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. कहा जाता है कि विक्रम बत्रा ने इस युद्ध के दौरान एक बहुत फेमस लाइन कही थी, ‘ये दिल मांगे मोर!’ और बाद में इसे पेप्सी ने अपना स्लोगन बना लिया था. कहां जाता है कि पड़ोसी देश की फौज ने उनके मारे गए कई सारे सैनिकों की डेड बॉडी लेने तक के लिए मना कर दिया था. आखिरकार 26 जुलाई 1999 को आखिरी चोटी जीती गई. और कारगिल में तिरंगा लहरा कर हमारी इंडियन आर्मी ने फिर एक बार पूरे जज्बे के साथ यह लड़ाई जीत कर भारत का सिर ऊंचा कर दिया था.
हमें भी हमारी वीर जवानों की सेना पर पूरी तरह से भरोसा है, विश्वास है. जब कभी ऐसे हमले भारत पर हुए, हमारी सेना पूरी जी जान से ताकत लगाकर उन हमलों को नेस्तनाबूद करने में कामयाब रही है. जिस प्रकार हमारे देश की सीमाओं का रक्षण करना भारतीय सेना का दायित्व है. हमारे सैनिक हमेशा अपनी जानपर कुर्बान होकर कोई भी जंग लड़ते हैं. उसी प्रकार हमारे देश के अंतर्गत भी शांति और सुरक्षा बनाए रखना हमारा परम कर्तव्य है.
अतः हमें भी अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक रहते हुए हमारे पूरे समाज की आर्थिक, सामाजिक और जिंदगी का भी हमें ख्याल रखना चाहिए. ना कि उनकी जिंदगी जोखिम में डालनी चाहिए. जो कि अभी कोरोना के चलते हम कर रहे हैं. इसलिए हम भी आपसे यही गुजारिश करते हैं कि आप जितना अपने घरों में रहेंगे, उतना ही बाकी लोग भी खुद को सुरक्षित महसूस करेंगे. अतः घर पर ही रहिए और स्वस्थ रहिए. इसी गुजारिश के साथ हम फिर एक बार अगला लेख लेकर आप की खिदमत में हाजिर होंगे. इस लेख को पूरा पढ़ने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया.
जय हिंद!
© ✍? संतोष साळवे
एस सॉफ्ट ग्रुप इंडिया