दोस्तों, यह पढ़कर तो आपके मन में यही विचार आया होगा कि माता-पिता बनना और पर्यावरण के प्रतिकूल बनना इनमें में क्या संबंध है?
आपका सवाल लाजमी है लेकिन यह पूरा लेख पढ़ने के बाद आपको इसके बारे में जरूर जानकारी मिलेगी.
माता पिता के मन में अपनी संतान के लिए और उसके भविष्य के लिए हमेशा ही एक चिंता रहती है.
माता-पिता बनना मतलब अपनी जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक होना होता है. हाल ही में हुए एक शोध के बाद यह बात सामने आई है कि माता-पिता होने के लिए या होने के बाद सम्भवतः आप 100% पर्यावरण वादी नहीं रहते.
स्वीडन में किए गए शोध में पर्यावरण शोधकर्ताओं ने क्या पाया?
स्वीडन में एक नए अध्ययन में पाया गया है कि जो लोग पर्यावरण के बारे में वास्तव में परवाह करते हैं, वे अपनी प्राथमिकताओं को खो देते हैं. जिसमें पितृत्व की वास्तविकताओं से बाकी बातों को भी फिर से किनारा कर दिया जाता है.
शोधकर्ताओं ने पाया कि पूर्वी देशों में रहने वाले वयस्क माता-पिता उनके जीवन काल में आवागमन, भोजन, गरम पानी और बिजली के ज्यादा उपयोग के कारण सबसे ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं. शोधकर्ताओं की टीम ने पाया कि बच्चों के साथ दो वयस्क रहने वाले घरों में बाकी घरों की तुलना में 25% तक अधिक कार्बन उत्सर्जन होता है.
उनके निष्कर्ष बताते हैं कि जिन्हें बच्चे हैं, ऐसे मां बाप कार्बन डाइऑक्साइड की उत्सर्जन में वृद्धि ला रहे हैं.
लेकिन ऐसे भी बहुत से मां-बाप हैं, जो कार्बन उत्सर्जन है बढ़ोतरी के कारण और पर्यावरण के हिस्से को हानी पहुंचने के कारण बच्चे ना पालने का निर्णय करते हैं.इसका मतलब यह है कि कई माता-पिता ऐसे भी है, जो खुद को पर्यावरण वादी मानते हैं और पर्यावरण के प्रति सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में उसे सूचीबद्ध करते हैं, भले ही उनका व्यवहार बाकी समाज से अधिक मेल न खा रहा हो.
बच्चों को परिवर्तनशीलता के पथ पर चलने के लिए उदयुक्त करें
यूनिवर्सिटी ऑफ व्योमिंग अर्थात यूडब्ल्यू के अर्थशास्त्री जेसन शोग्रेन बताते हैं कि माता-पिता बनने से कई व्यक्ति बदल सकते हैं. वे अपने और अपने बच्चों के बारे में अधिक सोचते हैं और उनके भविष्य के बारे जोखिम भरी चिंता भी करते हैं.
लेकिन जब बच्चे परिवर्तनशील हो तो हमारे परिणाम यह बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन के बारे में माता-पिताओं की चिंता उन्हें बाकी वयस्कों की तुलना में अधिक पर्यावरणवादी बनाती है.
लेकिन यह अभी भी खुला प्रश्न है और वर्तमान में किसानों के अन्य राष्ट्रों और बड़े नमूनों के आकार को हमेशा सत्यापित करने की आवश्यकता रहेगी. पिछली बार किए हुए शोध में इसी बात पर बहुत से मिश्रित परिणाम प्रदान किए थे, लेकिन नए अध्ययन के द्वारा माता-पिता पर्यावरण के दृष्टिकोण और उनकी व्यवहारों को बदले इस बात में इस विषय पर पुनर्मूल्यांकन किया है जिसमें 4000 स्वीडिश घर भी शामिल है.
यह कहना पूरी तरह से गलत नहीं होगा कि यह सिर्फ समय और ऊर्जा के बारे में ही हो सकता है. हालांकि वर्तमान में यह सिर्फ एक सिद्धांत ही है. स्वीडिश घरों में किए गए रिपोर्ट से यह पता चला है कि सभी लोगों में तो छोटे बच्चे वाले माता-पिता ओं के पास समय की कमी होती है और यही उनके लिए एक बड़ा अंतर है.
कार्बन सहित सामान की आवागमन करने वाली गाड़ियां बाकी गाड़ियों की तुलना में सुविधाजनक और सस्ती होती है. माता-पिताओं की कार्बन खपत बच्चों की तत्काल वरीयताओं से प्रभावित हो सकती है. जैसे कि अपने परिवार के अनुकूल रिसोर्ट के लिए विदेश जाना यह भी उसी का एक कारण है. बच्चे भी निश्चित रूप से पर्यावरण के बारे में चिंतित हो सकते हैं अगर घरेलू उत्पाद की उपयोग में कार्बन की उन्हें प्रभावित कर सके तो यह हो सकता है.
शोधकर्ताओं के अनुसार यह शोध सिर्फ एक देश में ही हुआ है लेकिन उसके निष्कर्ष दुनिया भर के कई अन्य देशों के लिए प्रासंगिक हो सकते हैं. उनका यह कहना है कि अगर हम स्वीडन ने इन परिणामों को पा सकते हैं तो यह मानना बहुत सुरक्षित है कि बाकी देशों की माता पिता के कार्बन उत्सर्जन में असमानता हो सकता है.
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© संतोष साळवे
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