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Atmanirbharta: दोस्तों, आज हम ‘आत्मनिर्भरता सीख लो, सब कुछ मिल जाएगा’ इस लेख के भाग-2 के बारे में बात करेंगे.
यदि आप आत्म निर्भर हो गए, यदि आप ने अपनी अंदर की शक्ति को पहचान लिया, तो संसार में आपके लिए कुछ भी असंभव नहीं होगा. स्वामी राम तीर्थ कहते हैं कि यदि कोई मुझसे एक शब्द में तत्वज्ञान पूछे, तो मैं यही कहूंगा कि Atmanirbharta या आत्मबोध!
आखिर हमें Atmanirbharta कैसे पानी है?
यह सत्य है कि जब आप खुद की सहायता करते हैं, तभी आप सब कुछ पा सकते हैं, आपके लिए कुछ भी असंभव नहीं है. जो चीजें या बातें आप सोचते हैं वह एक प्रकार से सत्य ही होता है, बस जरूरत है उसे एक साकार रूप देने की! जो हम अपनी आत्मनिर्भर और आत्म विश्वास से दे सकते हैं.
जब कोई व्यक्ति अपना स्वयं का काम किसी दूसरे से करवाता है, तो वह कहता है कि जाओ, मेरा यह काम कर दो, तो उसके पास उसके मित्र, संपत्ती, नोकर सभी चले जाते हैं, क्योंकि वह स्वयं उन्हे कहता है की जाओ, जाओ. जबकि दूसरी ओर आप अपना काम स्वयं करते हैं या दूसरों से सहयोग मांगते हैं या किसी को कहते हैं कि आओ, हम साथ में मिलकर यह काम करेंगे. तब आपके पास इष्ट मित्र, संपत्ति, नोकर सभी चले आएंगे, क्योंकि आप उन्हें कह रहे हैं कि आओ, आओ.
कभी भी खुद को तुच्छ ना समझें
यदि आप खुद को निर्धन, तुच्छ जीव मानते हैं, तो आप ऐसा ही हो जाते हैं. इसके विपरीत यदि आप आत्मसम्मान की भावना से परिपूर्ण है, Atmanirbharta है तो आपको सम्मान, स्नेह और सफलता प्राप्त होगी.स्वयं को दीनहीन, दुर्बल, भाग्यहीन कभी ना समझे, क्योंकि आप जैसा सोचते है, वैसे ही बन जाएंगे.
हमेशा ध्यान में रखें कि निसंदेह हम सब का शरीर, रूप रंग, अलग अलग होता है, लेकिन एक अमूल्य चीज हम सबके पास होती है, जिसे हम ‘मस्तिष्क’ कहते हैं. सबके के पास अपना खुद का मस्तिष्क, अपना खुद का ज्ञान होता है.
जो इस ज्ञान का जितना सदुपयोग करता है, उसे उतनीही उसकी प्राप्ति और वृद्धि होती रहेगी. ज्ञान बांटने से बढ़ता है, तो आप भी ज्ञान बांटना शुरू कीजिए. लेकिन यह भी ध्यान रखें कि आप उस ज्ञान को स्वयं अपने अंदर भी समाहित करें.
किसीने बहुत खूब वचन कहा है कि,
“अर्थ ना हो तो शब्द व्यर्थ हैं,
श्रद्धा ना हो तो पूजा व्यर्थ है,
प्रेम ना हो तो जीवन व्यर्थ है,
और भूख ना हो तो भोजन व्यर्थ है!”
यदि आप किसी को कुछ उपदेश दे रहे हैं, कुछ ज्ञान दे रहे हैं, तो पहले उस ज्ञान को अपने अंदर भी समाहित कीजिए, उसे स्वयं पर आजमाइएं. उसके बाद ही उसे बांटे. तब जाकर आपकी वाणी में उसका प्रभाव दिखेगा, आपकी वाणी में वह आत्मनिर्भरता आएगी, वह विश्वास दिखेगा, जो किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेगा.
दोस्तों, अब हम जान गए हैं कि, हमें अब आत्मनिर्भर बनना के लिये खुद को तुच्छ समझना छोड़ देना होगा. हम जो चाहे वह प्राप्त कर सकते हैं. उतनी शक्ति हममें हैं, इस पर हमें विश्वास करना होगा, तभी यह संभव हो सकता है.
हमारा ‘Atmanirbharta सीख लो, सब कुछ मिल जाएगा’ इस विशेष लेख का भाग-2 पूरा पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद! हम आपके लिए रोज ऐसेही अच्छे लेख लेकर आते है. अगर आपको यह लेख पसंद आता है तो फेसबुक और व्हाट्सएप पर अपने दोस्तों को इसे फॉरवर्ड करना ना भूले. साथ ही हमारी वेबसाइट को रोजाना भेंट दे.
✍? संतोष साळवे
एस सॉफ्ट ग्रुप इंडिया