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World Environment Day Article in Hindi by Prof. Shaikh Moeen

पर्यावरण संरक्षण में संविधान, कानून और न्यायपालिका की भूमिका: पर्यावरण संरक्षण आज न केवल देश की बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक महती आवश्यकता बन गया है। भारत में विभिन्न कानूनी प्रावधान, सरकार, न्यायालय तथा संविधान इस संबंध में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। लेकिन केवल कानूनों से पर्यावरण संरक्षण संभव नहीं है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि इसे जन आंदोलन में बदला जाए। प्रत्येक नागरिक को इस में अपना महत्वपूर्ण योगदान देना होगा। पर्यावरण संरक्षण आज एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा है। विश्व की चिंता पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों को ले कर भी है।

विश्व समुदाय निरंतर इस बात पर विचार कर रहा है कि पर्यावरण में आए परिवर्तनों के लिए कौन जिम्मेदार है? भारत भी इस अभियान में अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के साथ एक जुट है तथा इस अभियान में हर तरह से मदद कर रहा है। भारत में भी विभिन्न कानून एवं संविधान में पर्यावरण सुधार हेतु प्रावधान किए गए हैं तथा आवश्यकतानुसार इस में सुधार किए जा रहे हैं।

विश्व के अन्य देशों की तरह भारत में भी पर्यावरण की स्थिति को ले कर समय-समय पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टें प्रकाशित होती रहती हैं, जिन में देश की पर्यावरणीय सेहत की जानकारी दी जाती है। इन रिपोर्टों से पता चलता है कि पर्यावरण के प्रति हमारी सजगता का स्तर क्या है?

भारत संसार के उन थोडे से देशों में से एक है जिन के संविधानों में पर्यावरण का विशेष उल्लेख है। भारत ने पर्यावरणीय कानूनों का व्यापक निर्माण किया है तथा हमारी नीतिया पर्यावरण संरक्षण में भारत की पहल दर्शाती हैं। पर्यावरण संबंधी सभी विधेयक होने पर भी भारत में पर्यावरण की स्थिति काफी गंभीर बनी हुई है।

पर्यावरण संरक्षण में न्यायपालिका ने भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस के प्रयासों से स्वच्छ पर्यावरण मौलिक अधिकार का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गया है। दिल्ली में प्रदूषित इकाइयों पर बंदी तथा स्थांनातरण, सी.एन.जी का प्रयोग, ताजमहल को प्रदूषण से बचाना, पर्यावरण को शैक्षणिक पाठ्यक्रम का अनिवार्य अंग बनाना तथा संचार माध्यमों के द्वारा पर्यावरण के महत्त्व का प्रचार-प्रसार आदि न्यायपालिका के सराहनीय प्रयासों की एक झलक है।

जनहित याचिकाओं ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में गैर-सरकारी संगठनों, नागरिक समाज तथा आम आदमी की भागीदारी को प्रोत्साहित किया है। यह इस के प्रयासों का ही फल है कि आज सरकार तथा नीति निर्माताओं की सूची में पर्यावरण प्रथम मुद्दा है तथा वे पर्यावरण संरक्षण के प्रति गंभीर हो गये हैं।

भारतीय संविधान जिसे 1950 में लागू किया गया था परन्तु इस में सीधे तौर पर पर्यावरण संरक्षण हेतू प्रावधान नहीं थे। 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन ने भारत सरकार का ध्यान पर्यावरण संरक्षण की ओर खिंचा। सरकार ने 1976 में संविधान में संशोधन कर दो महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद 48A तथा 51A(g) जोड़ें।

अनुच्छेद 48 A राज्य सरकार को निर्देश देता है कि वह ‘पर्यावरण की सुरक्षा और उस में सुधार सुनिश्चित करे तथा देश के वनों तथा वन्यजीवन की रक्षा करे’। अनुच्छेद 51A(g) नागरिकों को कर्तव्य प्रदान करता है कि वे ‘प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करे तथा उस का संवर्धन करे और सभी जीवधारियों के प्रति दयालु रहे’।

स्वतंत्रता के पश्चात बढते औद्योगिकरण, शहरीकरण तथा जनसंख्या वृद्धि से पर्यावरण की गुणवत्ता में निरंतर कमी आती गई। पर्यावरण की गुणवत्ता की इस कमी में प्रभावी नियंत्रण व प्रदूषण के परिप्रेक्ष्य में सरकार ने समय-समय पर अनेक कानून व नियम बनाए। इन में से अधिकांश का मुख्य आधार प्रदूषण नियंत्रण व निवारण था।

World Environment Day Article in Hindi: संविधान और पर्यावरण
World Environment Day Article in Hindi: संविधान और पर्यावरण

World Environment Day Article in Hindi: संविधान और पर्यावरण

भारतीय संविधान में मौलिक कर्त्तव्यों के तहत हर नागरिक से अपेक्षा की जाती है कि वह पर्यावरण को सुरक्षित रखने में योगदान देगा। जीने के बेहतर मानक और प्रदूषणरहित वातावरण संविधान के भीतर अंतर्निहित हैं।

भारत का स्वरूप एक लोक-कल्याणकारी राज्य का है और स्वस्थ पर्यावरण भी कल्याणकारी राज्य का ही एक तत्त्व है। प्रत्येक व्यक्ति के विकास के लिये सब से ज़रूरी मौलिक अधिकारों की गारंटी भारत का संविधान भाग-3 के तहत देता है।

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के अनुसार पर्यावरण में जल, हवा और जमीन के साथ मानव, अन्य जीवित चीजें, पेड़-पौधे, सूक्ष्म जीव-जंतु और संपत्ति आदि शामिल हैं।

यह कानून कहता है कि पर्यावरण के अधिकार के बिना व्यक्ति का विकास संभव नहीं है। भारत में पर्यावरण कानून का इतिहास लगभग 125 वर्ष पुराना है। इस संबंध में प्रथम कानून 1894 में पारित हुआ था और इस में वायु प्रदूषण नियंत्रणकारी प्रावधान थे।

प्राकृतिक पर्यावरण
प्राकृतिक पर्यावरण

प्राकृतिक पर्यावरण

अनुच्छेद 51A(g) कहता है कि जंगल, तालाब, नदियां, वन्यजीव सहित सभी तरह की प्राकृतिक पर्यावरण संबंधित चीजों की रक्षा करना व उन को बढ़ावा देना हर भारतीय का कर्त्तव्य होगा। साथ ही प्रत्येक नागरिक को सभी सजीवों के प्रति करुणा रखनी होगी।

सार्वजनिक स्वास्थ्य

संविधान के अनुच्छेद 47 के अनुसार लोगों के जीवन स्तर को सुधारना, उन्हें भरपूर पोषण उपलब्ध कराना और सार्वजनिक स्वास्थ्य की वृद्धि के लिये काम करना राज्य के प्राथमिक कर्त्तव्यों में शामिल हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के तहत पर्यावरण संरक्षण और उस में सुधार भी शामिल हैं क्योंकि इस के बिना सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता।

कृषि एवं जीव-जगत

अनुच्छेद 48 कृषि एवं जीव-जगत के संरक्षण की बात करता है। यह अनुच्छेद राज्यों को निर्देश देता है कि वे कृषि व जीवों से जुड़े कारोबार को आधुनिक व वैज्ञानिक तरीके से संगठित करने के लिये जरूरी कदम उठाएँ।

विशेष तौर पर राज्यों को जीव-जंतुओं की प्रजातियों को संरक्षित करना चाहिये और गाय, बछड़ों, भेड़-बकरी व अन्य जानवरों की हत्या पर रोक लगानी चाहिये। संविधान का अनुच्छेद 48A कहता है कि राज्य पर्यावरण संरक्षण व उस को बढ़ावा देने का काम करेंगे और देश भर में जंगलों व वन्य जीवों की सुरक्षा के लिये काम करेंगे।

प्रमुख संवैधानिक प्रावधान

संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार कानून द्वारा स्थापित बाध्यताओं को छोड़ कर किसी भी व्यक्ति को जीवन जीने और व्यक्तिगत आज़ादी से वंचित नहीं रखा जाएगा। मेनका गांधी बनाम भारत संघ संबंधी मुकदमे में 1978 में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आने के बाद अनुच्छेद 21 की समय-समय पर उदारवादी तरीके से व्याख्या की जा चुकी है।

यह अनुच्छेद जीवन जीने का मौलिक अधिकार देता है और इस में पर्यावरण का अधिकार, बीमारियों व संक्रमण के खतरे से मुक्ति का अधिकार अंतर्निहित है।

स्वस्थ वातावरण का अधिकार प्रतिष्ठा से मानव जीवन जीने के अधिकार की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वस्थ वातावरण में जीवन जीने के अधिकार को पहली बार उस समय मान्यता दी गई थी जब 1988 में रूरल लिटिगेशन एंड एंटाइटलमेंट केंद्र बनाम राज्य (देहरादून खदान केस के रूप में प्रसिद्ध) मामला सामने आया था।

यह देश में अपनी तरह का पहला मामला था जिस में सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के तहत पर्यावरण व पर्यावरण संतुलन संबंधी मुद्दों को ध्यान में रखते हुए इस मामले में खनन (गैरकानूनी खनन) को रोकने के निर्देश दिये थे।

इस से पहले 1987 में एम.सी. मेहता बनाम भारतीय संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रदूषण रहित वातावरण में जीवन जीने के अधिकार को भारतीय संविधान के अनु्छेद 21 के अंतर्गत जीवन जीने के मौलिक अधिकार के रूप में माना था।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 (1) a व अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को बेहतर वातावरण और शांतिपूर्ण जीवन जीने का अधिकार देता है। 1993 के पी.ए. जैकब बनाम कोट्टायम पुलिस अधीक्षक मामले में केरल उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि भारतीय संविधान में इस अनु्च्छेद के तहत दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी भी नागरिक को तेज़ आवाज़ में लाउडस्पीकर व अन्य शोर-शराबा करने वाले उपकरण आदि बजाने की इजाजत नहीं देता।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(g) प्रत्येक नागरिक को अपनी पसंद के अनुसार किसी भी तरह का व्यवसाय, काम धंधा आदि करने का अधिकार देता है लेकिन इस में कुछ प्रतिबंध भी हैं। कोई भी नागरिक ऐसे किसी भी काम को नहीं कर सकता जिस से समाज व लोगों के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़े। पर्यावरण संरक्षण संविधान के इस अनुच्छेद में अंतर्निहित है।

1954 के कोवरजी बी. भरुचा बनाम आबकारी आयुक्त, अजमेर के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि जहाँ कहीं भी पर्यावरण संरक्षण व व्यवसाय करने के अधिकार के बीच कोई विरोध होगा तो न्यायालय को पर्यावरण संबंधी हितों और व्यवसाय व कारोबार चुनने संबंधी अधिकार के बीच संतुलन बना कर किसी निर्णय पर पहुँचना होगा।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 के तहत जनहित याचिका पर्यावरण संबंधी याचिकाओं की धारा का ही परिणाम है। सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण को ले कर कई अभूतपूर्व और जनहित में निर्णय दिये हैं। सर्वोच्च न्यायालय कह चुका है कि पर्यावरण संरक्षण व वातावरण को शुद्ध रखने के लिये पूर्व सावधानियाँ रख कर ही विकास की राह पर आगे बढ़ पाना संभव है।

पर्यावरण संरक्षा के लिये देश में 200 से भी अधिक कानून हैं। इन कानूनों का खुल कर उल्लंघन होता है और इसीलिये भारत विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित देशों की श्रेणी में आता है। पर्यावरण एवं प्रकृति संरक्षण भले ही एक कानूनी मुद्दा है किंतु इसे सर्वाधिक रूप से स्वच्छ और संरक्षित रखने के लिये समाज के सभी घटकों के मध्य आवश्यक समझ एवं सामंजस्य के द्वारा सामूहिक प्रयास किया जाना ज़रूरी है।

मानव पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावशाली घटक है। पर्यावरण से इतर उस का अस्तित्व नहीं है क्योंकि पर्यावरण के अनेक घटकों के कारण वह निर्मित हुआ तथा अनेक कारकों से उस की क्रियाएँ प्रभावित होती रहती हैं। मानव पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण उपभोक्ता भी है।

तेज़ी से बढती आबादी, भोगवाद की संस्कृति, प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन, युद्ध, परमाणु परीक्षण, औद्योगिक विकास आदि के कारण नई-नई पारिस्थितिकी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इन समस्याओं को उत्पन्न न होने देना मानव जाति का प्रमुख उद्देश्य होना चाहिये। अपने नैतिक, आर्थिक तथा सामाजिक विकास की उच्चतम उपलब्धियाँ मानव तभी प्राप्त कर सकता है जब वह प्राकृतिक संपदा का विवेकपूर्ण उपयोग करेगा।

Citation

महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि दो चीजें असीमित हैं–एक ब्रह्माण्ड तथा दूसरी मानव की मूर्खता। मनुष्य ने अपनी मूर्खता के कारण अनेक समस्याएँ उत्पन्न की हैं जिन में पर्यावरण प्रदूषण भी एक है। इस पर अंकुश लगाने के लिये पर्यावरण संरक्षण को तभी प्रभावी बनाया जा सकता है जब उस में लोगों की सहभागिता बढ़ाने के साथ पर्यावरण जागरूकता,

पर्यावरण संबंधी शिक्षा का विकास करने व लोगों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाने के लिये पर्यावरण की रक्षा से जुड़े संवैधानिक प्रावधानों का ज्ञान हो। यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि कानूनी प्रयासों साथ ही सामूहिक सामंजस्य एवं आपसी समझ के द्वारा प्रयास करने से ही प्रदूषण पर प्रभावशाली तरीके से नियंत्रण करना संभव हो सकता है।

प्रा. शेख मोईन शेख नईम
सहायक प्राध्यापक,
School of Law, आई.टी.एम. विश्वविद्यालय, ग्वालियर
7776878784


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